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Sunday, September 13, 2020

योग भगाए रोग :वीरभद्रासन

  योग भगाए रोग :वीरभद्रासन है


शरीर को मजबूती देने वाले इस आसन के जानिये लाभ और योग विधि


नाम के रूप में दर्शाया गया है, यह योग मुद्रा आपके शरीर की मूल शक्ति बनाता है और आपकी मांसपेशियों के धीरज को बढ़ाता है। इस मुद्रा का नाम वीरभद्र, एक भयंकर योद्धा, हिंदू भगवान शिव का अवतार के नाम पर रखा गया है।योद्धा वीरभद्र की कहानी, उपनिषद की अन्य कहानियों की तरह, जीवन में प्रेरणा प्रदान करती है। यह आसन हाथों, कंधो ,जांघो एवं कमर की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है।


*वीरभद्रासन के लाभ* 


- छाती और फेफड़ों, कंधे और गर्दन, पेट, ग्राय्न में खिचाव लाता है।


- कंधों, बाज़ुओं, और पीठ की मांसपेशियों को मज़बूत करता है।


- जांघों, पिंडलियों, और टखनों को मज़बूत करता है और उनमें खिचाव लाता है।


- वीरभद्रासन साएटिका से राहत दिलाता है।


*वीरभद्रासन करने की विधि*


ताड़ासन में खड़े हो जायें। 

श्वास अंदर लें और 3 से 4 फीट पैर खोल लें। 

अपने बायें पैर को 45 से 60 दर्जे अंदर को मोड़ें, और दाहिने पैर को 90 दर्जे बाहर को मोड़ें। 

बाईं एड़ी के साथ दाहिनी एड़ी संरेखित करें। 

साँस छोड़ते हुए अपने धड़ को दाहिनी ओर 90 दर्जे तक घुमाने की कोशिश करें। 

आप शायद पूरी तरह धड़ ना घुमा पायें। अगर ऐसा हो तो जितना बन सके, उतना करें। 

धीरे से अपने हाथ उठाएँ जब तक हाथ सीधा आपके धड़ की सीध में ना आ जायें। 

हथेलियों को जोड़ लें और छत की ओर उंगलियों को पॉइंट करें।

ध्यान रखें की आपकी पीठ सीधी रहे। अगर पीठ मुडी होगी तो पीठ के निचले हिस्से में समय के साथ दर्द बैठ सकता है। 

अपने बाईं एड़ी को मज़बूती से ज़मीन पर टिकाए रखें और दाहिने घुटने को मोड़ें जब तक की घुटना सीधा टखने की ऊपर ना आ जाए। 

अगर आप में इतना लचीलापन हो तो अपनी जाँघ को ज़मीन से समांतर कर लें। 

अपने सिर को उठायें और दृष्टि को उंगलियों पर रखें। 

कुल मिला कर पाँच बार साँस अंदर लें और बाहर छोड़ें ताकि आप आसन में 30 से 60 सेकेंड तक रह सकें। 

धीरे धीरे जैसे आपके शरीर में ताक़त और लचीलापन बढ़ने लगे, आप समय बढ़ा सकते हैं 

90 सेकेंड से ज़्यादा ना करें। 

जब 5 बार साँस लेने के बाद आप आसान से बाहर आ सकते हैं।

आसन से बाहर निकलने के लिए सिर नीचे कर लें, फिर दाहिनी जाँघ को उठायें, हाथ नीचे कर लें, धड़ को वापिस सीधा कर लें और पैरों को वापिस अंदर ले आयें

आसन को ख़तम ताड़ासन में करें। 

दाहिनी ओर करने के बाद यह सारे स्टेप बाईं ओर भी करें।


*वीरभद्रासन में सावधानियां*


उच्च रक्तचाप या दिल की समस्याओं से पीड़ित व्यक्ति ये आसन ना करें 


गर्दन की चोट या वर्तमान में गर्दन का दर्द हो तो आसन से बचे 


ये आसन ना करें जब रीढ़ की हड्डी में किसी भी प्रकार की तकलीफ हो।


गर्भवती महिलाओं को इस आसन से फायदा होगा, खासकर यदि वे अपने दूसरे और तीसरे तिमाही में हैं, लेकिन केवल तभी वे नियमित रूप से योग का अभ्यास कर रहे हैं।



सदाचार बनाम समलैंगिकता: एक नजर

 सदाचार बनाम समलैंगिकता


🔷सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैगिंकता को धारा 377 के अंतर्गत अपराध की श्रेणी से हटा दिया है। अपने आपको सामाजिक कार्यकर्ता कहने वाले, आधुनिकता का दामन थामने वाले एक विशेष बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा सुप्रीम कोर्ट क निर्णय पर बहुत प्रसन्न हो रहे है। उनका कहना है कि अंग्रेजों द्वारा 1861 में बनाया गया कानून आज अप्रासंगिक है। धारा 377 को यह जमात सामाजिक अधिकारों में भेदभाव और मौलिक अधिकारों का हनन बताती है। समलैगिंकता का समर्थन करने वालो का पक्ष का कहना है कि इससे HIV कि रोकथाम करने में रुकावट होगी क्यूंकि समलैगिंक समाज के लोग रोक लगने पर खुलकर सामने नहीं आते।


🔷अधिकतर धार्मिक संगठन धारा 377 के हटाने के विरोध में हैं। उनका कहना है कि यह करोड़ो भारतीयों का जो नैतिकता में विश्वास रखते हैं उनकी भावनाओं का आदर हैं। आईये समलैंगिकता को प्रोत्साहन देना क्यों गलत है इस विषय की तार्किक विवेचना करें।


🔷हमें इस तथ्य पर विचार करने की आवश्यकता है कि अप्राकृतिक सम्बन्ध समाज के लिए क्यों अहितकारक है। अपने आपको आधुनिक बनाने की हौड़ में स्वछन्द सम्बन्ध की पैरवी भी आधुनिकता का परिचायक बन गया हैं। सत्य यह हैं कि इसका समर्थन करने वाले इसके दूरगामी परिणामों की अनदेखी कर देते हैं।


 प्रकृति ने मानव को केवल और केवल स्त्री-पुरुष के मध्य सम्बन्ध बनाने के लिए बनाया है। इससे अलग किसी भी प्रकार का सम्बन्ध अप्राकृतिक एवं निरर्थक है। चाहे वह पुरुष-पुरुष के मध्य हो, स्त्री स्त्री के मध्य हो। वह विकृत मानसिकता को जन्म देता है। उस विकृत मानसिकता कि कोई सीमा नहीं है। 


उसके परिणाम आगे चलकर बलात्कार (Rape) , सरेआम नग्न होना (Exhibitionism), पशु सम्भोग (Bestiality), छोटे बच्चों और बच्चियों से दुष्कर्म (Pedophilia), हत्या कर लाश से दुष्कर्म (Necrophilia), मार पीट करने के बाद दुष्कर्म (Sadomasochism) , मनुष्य के शौच से प्रेम (Coprophilia) और न जाने किस-किस रूप में निकलता हैं। अप्राकृतिक सम्बन्ध से संतान न उत्पन्न हो सकना क्या दर्शाता है? सत्य यह है कि प्रकृति ने पुरुष और नारी के मध्य सम्बन्ध का नियम केवल और केवल संतान की उत्पत्ति के लिए बनाया था। 


आज मनुष्य ने अपने आपको उन नियमों से ऊपर समझने लगा है। जिसे वह स्वछंदता समझ रहा है। वह दरअसल अज्ञानता है। भोगवाद मनुष्य के मस्तिष्क पर ताला लगाने के समान है। भोगी व्यक्ति कभी भी सदाचारी नहीं हो सकता। वह तो केवल और केवल स्वार्थी होता है। इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य को सामाजिक हितकारक नियम पालन का करने के लिए बाध्य होना चाहिए। जैसे आप अगर सड़क पर गाड़ी चलाते है। तब आप उसे अपनी इच्छा से नहीं अपितु ट्रैफिक के नियमों को ध्यान में रखकर चलाता है। वहाँ पर क्यों स्वछंदता के मौलिक अधिकार का प्रयोग नहीं करता? अगर करेगा तो दुर्घटना हो जायेगी। जब सड़क पर चलने में स्वेच्छा की स्वतंत्रता नहीं है। तब स्त्री पुरुष के मध्य संतान उत्पत्ति करने के लिए विवाह व्यवस्था जैसी उच्च सोच को नकारने में कैसी बुद्धिमत्ता है?


🔷कुछ लोगो द्वारा समलैंगिकता के समर्थन में खजुराओ की नग्न मूर्तियाँ अथवा वात्सायन का कामसूत्र को भारतीय संस्कृति और परम्परा का नाम दिया जा रहा है। जबकि सत्य यह है कि भारतीय संस्कृति का मूल सन्देश वेदों में वर्णित संयम विज्ञान पर आधारित शुद्ध आस्तिक विचारधारा हैं।


🔷भौतिकवाद अर्थ और काम पर ज्यादा बल देता हैं। जबकि अध्यातम धर्म और मुक्ति पर ज्यादा बल देता हैं । वैदिक जीवन में दोनों का समन्वय हैं। एक ओर वेदों में पवित्र धनार्जन करने का उपदेश है। दूसरी ओर उसे श्रेष्ठ कार्यों में दान देने का उपदेश है। एक ओर वेद में सम्बन्ध केवल और केवल संतान उत्पत्ति के लिए है। दूसरी तरफ संयम से जीवन को पवित्र बनाये रखने की कामना है । एक ओर वेद में बुद्धि की शांति के लिए धर्म की और दूसरी ओर आत्मा की शांति के लिए मोक्ष (मुक्ति) की कामना है। 


धर्म का मूल सदाचार है। अत: कहाँ गया है कि आचार परमो धर्म: अर्थात सदाचार परम धर्म है। आचारहीन न पुनन्ति वेदा: अर्थात दुराचारी व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। अत: वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरित्र निर्माण, ब्रह्मचर्य आदि पर बहुत बल दिया गया है।


🔷जो लोग यह कुतर्क देते हैं कि समलैंगिकता पर रोक से AIDS कि रोकथाम होती है। उनके लिए विशेष रूप से यह कहना चाहूँगा कि समाज में जितना सदाचार बढ़ेगा, उतना समाज में अनैतिक सम्बन्धों पर रोकथाम होगी। आप लोगों का तर्क कुछ ऐसा है कि आग लगने पर पानी कि व्यवस्था करने में रोक लगने के कारण दिक्कत होगी, हम कह रहे हैं कि आग को लगने ही क्यूँ देते हो? भोग रूपी आग लगेगी तो नुकसान तो होगा ही होगा। कहीं पर बलात्कार होंगे, कहीं पर पशुओं के समान व्यभिचार होगा, कहीं पर बच्चों को भी नहीं बक्शा जायेगा। इसलिए सदाचारी बनो, नाकि व्यभिचारी।


🔷एक कुतर्क यह भी दिया जा रहा है कि समलैंगिक समुदाय अल्पसंख्यक है, उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए। मेरा इस कुतर्क को देने वाले सज्जन से प्रश्न है कि भारत भूमि में तो अब अखंड ब्रह्मचारी भी अल्प संख्यक हो चले है। उनकी भावनाओं का सम्मान रखने के लिए मीडिया द्वारा जो अश्लीलता फैलाई जा रही हैं उनपर लगाम लगाना भी तो अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा के समान है।


🔷एक अन्य कुतर्की ने कहा कि पशुओं में भी समलैंगिकता देखने को मिलती हैं। मेरा उस बंधू से एक ही प्रश्न हैं कि अनेक पशु बिना हाथों के केवल जिव्हा से खाते हैं, आप उनका अनुसरण क्यूँ नहीं करते? अनेक पशु केवल धरती पर रेंग कर चलते है आप उनका अनुसरण क्यूँ नहीं करते ? चकवा चकवी नामक पक्षी अपने साथी कि मृत्यु होने पर होने प्राण त्याग देता हैं, आप उसका अनुसरण क्यूँ नहीं करते?


🔷ऐसे अनेक कुतर्क हमारे समक्ष आ रहे हैं जो केवल भ्रामक सोच का परिणाम हैं।


🔶जो लोग भारतीय संस्कृति और प्राचीन परम्पराओं को दकियानूसी और पुराने ज़माने कि बात कहते हैं वे वैदिक विवाह व्यवस्था के आदर्शों और मूलभूत सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं। चारों वेदों में वर-वधु को महान वचनों द्वारा व्यभिचार से परे पवित्र सम्बन्ध स्थापित करने का आदेश है। 


ऋग्वेद के मंत्र के स्वामी दयानंद कृत भाष्य में वर वधु से कहता है- हे स्त्री! मैं सौभाग्य अर्थात् गृहाश्रम में सुख के लिए तेरा हस्त ग्रहण करता हूँ और इस बात की प्रतिज्ञा करता हूँ कि जो काम तुझको अप्रिय होगा उसको मैं कभी ना करूँगा। ऐसे ही स्त्री भी पुरुष से कहती है कि जो कार्य आपको अप्रिय होगा वो मैं कभी न करूँगी और हम दोनों व्यभिचारआदि दोषरहित होके वृद्ध अवस्था पर्यन्त परस्पर आनंद के व्यवहार करेंगे। 

रोचक बात तो यह है कि विद्वानों ने मुझको तेरे लिए और तुझको मेरे लिए दिया हैं, हम दोनों परस्पर प्रीति करेंगे तथा उद्योगी हो कर घर का काम अच्छी तरह और मिथ्याभाषण से बचकर सदा धर्म में ही वर्तेंगे। सब जगत का उपकार करने के लिए सत्यविद्या का प्रचार करेंगे और धर्म से संतान को उत्पन्न करके उनको सुशिक्षित करेंगे। हम दूसरे स्त्री और दूसरे पुरुष से मन से भी व्यभिचार ना करेगे।


🔶एक और गृहस्थ आश्रम में इतने उच्च आचार और विचार का पालन करने का मर्यादित उपदेश हैं , दूसरी ओर पशु के समान स्वछन्द अमर्यादित सोच हैं। पाठक स्वयं विचार करे कि मनुष्य जाति कि उन्नति उत्तम गृहस्थी बनकर समाज को संस्कारवान संतान देने में हैं अथवा पशुओं के समान कभी इधर कभी उधर मुँह मारने में हैं।


🔷समलैंगिकता एक विकृत सोच है, मनोरोग है, बीमारी है। इसका समाधान इसका विधिवत उपचार है। नाकि इसे प्रोत्साहन देकर सामाजिक व्यवस्था को भंग करना है। इसका समर्थन करने वाले स्वयं अँधेरे में है औरो को भला क्या प्रकाश दिखायेंगे। कभी समलैंगिकता का समर्थन करने वालो ने भला यह सोचा है कि अगर सभी समलैंगिक बन जायेंगे तो अगली पीढ़ी कहाँ से आयेगी? सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को दंड की श्रेणी से बाहर निकालने का हम पुरजोर असमर्थन करते है।

Thursday, September 3, 2020

भारतीय इतिहास के प्रमुख नरसंहार


भारतीय इतिहास के कुछ प्रमुख कत्लेआम/नरसंहार निम्न हैं-


1- दिल्ली का नरसंहार 1265 ई दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन बलबन द्वारा मेवाड़ के राजपूतों को पूर्णतया नष्ट कर दिया गया था, इसमें एक लाख हिन्दूओं की जान गयी थी।

2- बंगाल का नरसंहार 1353- फिरोज शाह तुगलक द्वारा एक लाख 90 हजार हिंदूओं का कत्लेआम।

3- दिल्ली नरसंहार 1398 ई- तैमूर लंग के सैनिकों द्वारा 1 लाख हिन्दूओं का कत्ल।

4- चित्तौड़गढ़ का नरसंहार 1568- उदयपुर में 30 हजार नागरिकों का कत्ल और 8 हजार औरतों का जौहर अकबर का शासन।

5 उत्तर भारत का नरसंहार 1738–40 - पर्शियन आक्रमणकारी नादिरशाह द्वारा मुगल साम्राज्य पर हमला 3 लाख भारतियों का कत्ल।

6- पानीपत 1761 अफगानों द्वारा 22 हजार मराठा औरतों और बच्चों का कत्ल।

7. Bangal femine 1943 to 1944 मरने वालों की संख्या 25 लाख से 35 लाख ।

7- कलकत्ता में दंगे 1946- आल इंडिया मुस्लिम लीग द्वारा प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस में 10 हजार हिन्दू मारे गये।

8- भारत का विभाजन 1947 -20 लाख लोगों का कत्लेआम,सिखों और हिन्दूओं का नरसंहार पश्चिमी पंजाब में और मुसलमानों का कत्लेआम पूर्व पंजाब में।

9- ब्राम्हणों का नरसंहार 1948 - महात्मा गांधी की हत्या के बाद पश्चिम महाराष्ट्र में चितपावन ब्राम्हणों का नरसंहार

10- सिखों का नरसंहार 1984- इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और अन्य जगहों पर 8000 सिखों का कत्ल।

11- गोधरा हत्याकांड 2002 - 27 फरवरी 2002 को ट्रेन में आग लगाकर 59 हिन्दूओं का कत्ल, 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद में दंगे हुए जिसमें 790 मुस्लिम और 254 हिंदू मारे गए।

Wednesday, September 2, 2020

नई शिक्षा नीति: बेसिक शिक्षा की कुछ न समझ आने वाली बातें

 

नई शिक्षा नीति: बेसिक शिक्षा की कुछ न समझ आने वाली बातें

  • जब किसी शिक्षक को बैंक में जाना होगा तो वह किस समय जाएगा?
  • शिक्षक 8 बजे स्कूल जाएगा और 3 बजे स्कूल बंद होने के बाद 30 मिनट और यानी 3:30 तक स्कूल में रहेगा और उसके बाद स्कूल बंद करके बैंक जाएगा तो 4 बजे तक बैंक बंद हो जाएगा तो शिक्षक बैंक का काम करेगा कब?
  • जबकि वह बैंक का काम भी स्कूल के बैंक वाला काम ही है


क्या अब शिक्षक स्कूल के काम के लिए अलग से छुट्टी ले जो उसकी खुद की छुट्टी है?

  • शिक्षक राशन लेने कब जाए? किस टाइम जाए स्कूल टाइम जाना नहीं है।
  • स्कूल खुलने के पहले राशन लेने के लिए वाहन और उसको स्कूल लेकर आना संभव नहीं है।
  • स्कूल बंद करने के बाद अगर ये काम किया जाए तो न तो टाइम से कोटेदार मिलेंगे और न ही सही टाइम पर वाहन और अगर ये सब मिल भी गया तो शिक्षक कितने टाइम तक स्कूल पर रहेगा उसकी कोई सीमा नहीं है।
  • प्रधान से किसी काम (mdm चेक/हस्ताक्षर) को करने किस टाइम जाया जाए?
  • सुबह स्कूल सही टाइम पर पहुंचने की टेंशन और शाम में 4 बजे के बाद जल्दी कोई प्रधान मिलता नहीं है और अगर काम सही टाइम पर न हो तो वेतन रोकने की धमकी अलग से हर वक्त मिलती रहती है। 


  • आज भी बहुत से स्कूलों में गैस की डिलीवरी सही टाइम पर नहीं होती। सिलेंडर लेने जाना होता है ये काम किस टाइम किया जाए? 
  • 4 बजे तक एजेन्सी बंद और सन्डे को तो वैसे भी बंद रहती है। सिलेंडर न आए तो खाना न बन पाए, वेतन रुके और सिलेंडर लेने जाओ तो भी वेटक रुके। 
  • सन्डे सिलेंडर  को मिलेगा  शिक्षक करे तो क्या करे कोई तो समझाए।


  • किताब/जूता/बैग/स्वेटर आदि स्कूल तक पहुंचाने का टेंडर होता है। पर स्कूल तक पहुंचती कैसे है ये चीज़ें ये सब लोग जानते है। 
  • ये सब समय से स्कूल में न मिले तो भी शिक्षक का ही वेतन रुकेगा।


  • यह जो हर दिन कोई न कोई सूचना विभाग द्वारा मांगी जाती है वो कैसे भेजी जाए?और किस समय शिक्षक उस सूचना को विभाग को दे इसका कोई समय है? 
  • अगर सूचना न दे तो आदेश की अवहेलना और वेतन रुकेगा ।


  • न तो प्राथमिक विद्यालयों में कोई चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है न कोई स्थाई गार्ड।
  • ऐसी स्थिति में बहुत से काम खुद शिक्षक को ही करने होते हैं तो वह काम शिक्षक किस समय में करे?


  • स्कूल टाइम में शिक्षक का इंटरनेट चलाना प्रतिबंधित है। ऐसा विभाग और सरकार बोलती है
  • पर विभाग सारी सूचना वॉट्सएप और इंटरनेट पर ही मांगता है। एक भी पत्र स्कूल नहीं आता जो भी काम सब व्हाट्स ऐप पर ही होता है तो शिक्षक करे तो क्या करे?


हम सरकार की हर बात मानने को तैयार हैं बल्कि हमें इसकी खुशी होगी। पर सरकार शिक्षक से सिर्फ़ शिक्षा देने का ही काम करवाए और कुछ नहीं। इससे हमारी छवि भी सरकार और समाज की नज़रों में अच्छी होगी और हमारी नजर में सबकी।


Monday, August 31, 2020

धर्म शास्त्र में स्नान के चार प्रकार

 


सुबह के स्नान को धर्म शास्त्र में चार उपनाम दिए हैं।


*1*  *मुनि स्नान

जो सुबह 4 से 5 के बीच किया जाता है।

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*2*  *देव स्नान

जो सुबह 5 से 6 के बीच किया जाता है।

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*3*  *मानव स्नान

जो सुबह 6 से 8 के बीच किया जाता है।

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*4*  *राक्षसी स्नान

जो सुबह 8 के बाद किया जाता है।


▶️मुनि स्नान सर्वोत्तम है।

▶️देव स्नान उत्तम है।

▶️मानव स्नान समान्य है।

▶️राक्षसी स्नान धर्म में निषेध है।



किसी भी मानव को 8 बजे के बाद स्नान नही करना चाहिए।

 * मुनि स्नान ....,

👉🏻घर में सुख ,शांति ,समृद्धि, विद्या, बल , आरोग्य , चेतना , प्रदान करता है।

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*देव स्नान ......

👉🏻 आप के जीवन में यश , कीर्ति , धन वैभव, सुख ,शान्ति, संतोष , प्रदान करता है।


*मानव स्नान.....

👉🏻काम में सफलता ,भाग्य ,अच्छे कर्मो की सूझ ,परिवार में एकता , मंगलमय जीवन प्रदान करता है।


राक्षसी स्नान.....

👉🏻 दरिद्रता , हानि , कलेश ,धन हानि , परेशानी, प्रदान करता है।

पांच जगह हँसना करोड़ो पाप के बराबर है

1. श्मशान में

2. अर्थी के पीछे

3. शौक में

4. मन्दिर में

5. कथा में

Monday, August 24, 2020

उड़ीसा में हिन्दू जागरण के अग्रदूत : स्वामी लक्ष्मणानंद

 23 अगस्त

उड़ीसा में हिन्दू जागरण के अग्रदूत : स्वामी लक्ष्मणानंद

कंधमाल उड़ीसा का वनवासी बहुल पिछड़ा क्षेत्र है। पूरे देश की तरह वहां भी 23 अगस्त, 2008 को जन्माष्टमी पर्व मनाया जा रहा था। रात में लगभग 30-40 क्रूर चर्चवादियों ने फुलबनी जिले के तुमुडिबंध से तीन कि.मी दूर स्थित जलेसपट्टा कन्याश्रम में हमला बोल दिया। 84 वर्षीय देवतातुल्य स्वामी लक्ष्मणानंद उस समय शौचालय में थे। हत्यारों ने दरवाजा तोड़कर पहले उन्हें गोली मारी और फिर कुल्हाड़ी से उनके शरीर के टुकड़े कर दिये।


स्वामी जी का जन्म ग्राम गुरुजंग, जिला तालचेर (उड़ीसा) में 1924 में हुआ था। वे गत 45 साल से वनवासियों के बीच चिकित्सालय, विद्यालय, छात्रावास, कन्याश्रम आदि प्रकल्पों के माध्यम से सेवा कार्य कर रहे थे। गृहस्थ और दो पुत्रों के पिता होने पर भी जब उन्हें अध्यात्म की भूख जगी, तो उन्होंने हिमालय में 12 वर्ष तक कठोर साधना की; पर 1966 में प्रयाग कुुंभ के समय संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी तथा अन्य कई श्रेष्ठ संतों के आग्रह पर उन्होंने ‘नर सेवा, नारायण सेवा’ को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।


इसके बाद उन्होेंने फुलबनी (कंधमाल) में सड़क से 20 कि.मी. दूर घने जंगलों के बीच चकापाद में अपना आश्रम बनाया और जनसेवा में जुट गये। इससे वे ईसाई मिशनरियों की आंख की किरकिरी बन गये। स्वामी जी ने भजन मंडलियों के माध्यम से अपने कार्य को बढ़ाया। उन्होंने 1,000 से भी अधिक गांवों में भागवत घर (टुंगी) स्थापित कर श्रीमद्भागवत की स्थापना की। उन्होंने हजारों कि.मी पदयात्रा कर वनवासियों में हिन्दुत्व की अलख जगाई। उड़ीसा के राजा गजपति एवं पुरी के शंकराचार्य ने स्वामी जी की विद्वत्ता को देखकर उन्हें 'वेदांत केसरी' की उपाधि दी थी।


जगन्नाथ जी की रथ यात्रा में हर वर्ष लाखों भक्त पुरी जाते हैं; पर निर्धनता के कारण वनवासी प्रायः इससे वंचित ही रहते थे। स्वामी जी ने 1986 में जगन्नाथ रथ का प्रारूप बनवाकर उस पर श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमाएं रखवाईं। इसके बाद उसे वनवासी गांवों में ले गये। वनवासी भगवान को अपने घर आया देख रथ के आगे नाचने लगे। जो लोग मिशन के चंगुल में फंस चुके थे, वे भी उत्साहित हो उठे। जब चर्च वालों ने आपत्ति की, तो उन्होंने अपने गले में पड़े क्रॉस फेंक दिये। तीन माह तक चली रथ यात्रा के दौरान हजारों लोग हिन्दू धर्म में लौट आये। उन्होंने नशे और सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति हेतु जनजागरण भी किया। इस प्रकार मिशनरियों के 50 साल के षड्यन्त्र पर स्वामी जी ने झाड़ू फेर दिया।


स्वामी जी धर्म प्रचार के साथ ही सामाजिक व राष्ट्रीय सरोकारों से भी जुड़े थे। जब-जब देश पर आक्रमण हुआ या कोई प्राकृतिक आपदा आई, उन्होंने जनता को जागरूक कर सहयोग किया; पर चर्च को इससे कष्ट हो रहा था, इसलिए उन पर नौ बार हमले हुए। हत्या से कुछ दिन पूर्व ही उन्हें धमकी भरा पत्र मिला था। इसकी सूचना उन्होंने पुलिस को दे दी थी; पर पुलिस ने कुछ नहीं किया। यहां तक कि उनकी सुरक्षा को और ढीला कर दिया गया। इससे संदेह होता है कि चर्च और नक्सली कम्युनिस्टों के साथ कुछ पुलिस वाले भी इस षड्यन्त्र में शामिल थे।


स्वामी जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनकी हत्या के बाद पूरे कंधमाल और निकटवर्ती जिलों में वनवासी हिन्दुओं में आक्रोश फूट पड़ा। लोगों ने मिशनरियों के अनेक केन्द्रों को जला दिया। चर्च के समर्थक अपने गांव छोड़कर भाग गये। स्वामी जी के शिष्यों तथा अनेक संतों ने हिम्मत न हारते हुए सम्पूर्ण उड़ीसा में हिन्दुत्व के ज्वार को और तीव्र करने का संकल्प लिया है।



Sunday, August 23, 2020

वर्ष की चार महारात्रियां

 


चार महारात्रि 


१. मोहरात्रि (जन्माष्टमी) । 

२. कालरात्रि (नरक चतुर्दशी) ।

३. दारुण रात्रि (होली) । 

४. अहोरात्रि (महाशिवरात्रि) 

कुछ महत्वपूर्ण में सनातन धर्म की सिद्ध तिथियां।