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Saturday, June 20, 2020

हिंदू विवाह की समस्याएँ और उनके विधिक निदान



      




हिंदू विवाह की समस्याएँ और उनके विधिक निदान


हमारे देश में विवाह संस्कार को एक बहुत ही सुंदर एवं स्मरणीय उत्सव माना जाता है। हमारी भारतीय संस्कृति में वैवाहिक बंधन को अटूट माना गया है। जिसे मुत्यु पर्यन्त निभाया जाता है। पतिव्रता धर्म की प्राचीन भारतीय अवधारणा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थी। पतिव्रता धर्म प्रत्येक स्त्री को प्यार, सेवा और अपने पति के प्रति समर्पण सिखाता है, वहीं यह पतियों को भी अपनी पत्नी के प्रति पूर्ण समर्पण और संकट के समय उसकी सुरक्षा के प्रति सजक बनाता है।
 
प्राचीन काल में विधवाओं के विवाह की वैसी सुविधा नहीं थी, जैसी विधुरों के विवाह की। उनके ऊपर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं था। वह विधुरों की भांति पुनः विवाह करने के लिए स्वतंत्र थीं। विधवा-पुनर्विवाह का समर्थन करते हुए राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद ने भारत से सती-प्रथा की समाप्ति पर बल दिया। 

स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने महिलाओं के उत्थान एवं विधवा विवाह के लिए अनेक प्रयत्न किए। भारत के अधिकांश हिस्सों में पितृसत्तात्मक परिवार की व्यवस्था है। यहाँ विवाह के बाद लड़की ससुराल में आकर रहती है। यहाँ पुरूष के नाम से ही परिवार का नाम चलता है। बच्चे अपने पिता के नाम से ही जाने और पहचाने जाते हैं। इसी कारण परिवार में लड़के के जन्म पर खुशियाँ मनाई जाती हैं और लड़की के जन्म पर दुःख। फलतः लड़कों के खाने-पीने पर विशेष ध्यान हीं दिया जाता है। आजकल कन्या जन्म से छुटकारा पाने के लिए कुछ स्थानों पर लड़की के पैदा होते ही उसे गला घोंटकर या भ्रूण हत्या के द्वारा मार दिया जाता है। कारण, लड़कियों से वंश आगे नहीं बढ़ सकता है। अधिकांश लड़कियाँ उचित शिक्षा से भी वंचित रह जाती हैं। 
          देश के कुछ हिस्सों में मातृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था है। इन परिवारों में लड़के शादी के बाद लड़की के घर जाकर रहते हैं। लड़की के कुल के नाम से ही परिवार का नाम आगे चलता है। लड़की ही परिवार की मुखिया होती है। पारिवारिक इकाई में महिला का निर्णय पुरूषों की तुलना अधिक प्रभावी होता है। ऐसी परिवार व्यवस्था मात्र कुछ समूह तक ही सीमित है। इसे विविधता में एकता और एकता में विविधता का अटूट दर्शन कहा जा सकता है।

भारत विभिन्नताओं का राष्ट्र है जिसमें विविधता कहीं रीति-रिवाज तो कहीं संस्कृति के रूप में सक्रिय है। यह संस्कृति की भिन्नता ही है कि भारत के कुछ हिस्सों में बहु-पति तो उत्तर भारत के कुछ कबुलाई जातियों में बहु-पत्नी प्रथा का प्रचलन है। हिंदू विवाह अधिनियम के पारित होने के पश्चात् किसी पुरूष या स्त्री को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति नहीं। हिंदू विवाह अधिनियम में हिंदू होने के कुछ खास प्रकार और उनकी प्रवृत्तियों की ओर इशारा किया गया है। हिंदू होने के संबंध में निम्नलिखित बातें निहित हैं—

·       किसी भी जाति या संप्रदाय से संबंधित व्यक्ति हिंदू है। जिसमें बौद्ध, जैन और सिक्ख आदि शामिल हैं।
·       कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसने अपना मूलधर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपनाया हो वह भी हिंदू है।
·    प्रायः अनुसूचित जनजातियों पर यह कानून लागू नहीं होता। क्योंकि उनके आचार और विचार-विधान भिन्न हैं।
हिंदू विवाह विधि
·       हिंदू विवाह में वर-वधू का विवाह समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार होता है।
·       प्रायः हिंदू विवाह होम, यज्ञ, हवन और सप्तपदी रीतियों से पूर्ण होता है।
·     हिंदू विवाह में वर और वधू दोनों पक्षों के परिजन द्वारा समस्त विधियों के साथ-साथ कुल देव का पूजन भी पूरे विधि-विधान से किया जाता है। जिससे नवल दंपत्ति जोड़े को उनके पूर्वजों का आशीस प्राप्त हो सके।

हिंदू विवाह के अनिवार्य तत्त्व
हिंदू समाज अपनी रीति-रिवाजों के निर्वाह के लिए प्रसिद्ध है। यही कारण है कि इस धर्म के सभी संस्कार प्रत्येक धर्म के संस्कारों से भिन्न और प्रभावी हैं। जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं से बड़ी सहजता से जाना जा सकता है—
· विवाह के  लिए लड़का और लड़की दोनों के लिए हिंदू होना आवश्यक है।
·     वर्तमान विवाह से पूर्व लड़का-लड़की दोनों किसी भी प्रकार से विवाहित न हों। विवाह के समय लड़के की कोई जीवित पत्नी और लड़की का कोई जीवित पति न हो।
·    विवाह के लिए लड़का-लड़की दोनों मानसिक रूप से स्वस्थ हों। साथ ही दोनों एक-दूसरे के करीबी रिश्तेदार न हों। जैसे माँ की बहन का लड़के का विवाह माँ की बेटी से वर्जित है। ठीक वैसे ही पिता के भाई या सगी बहन के बेटे से पिता की बेटी का विवाह वर्जित है।
·    विवाह के लिए लड़के की उम्र कम से कम 21 वर्ष और लड़की की उम्र 18 वर्ष अनिवार्य है। इससे कम उम्र के लड़का-लड़की का विवाह कानूनी अपराध है। किंतु विवाह वैध होगा।
हिंदू विवाह विच्छेद के कारण
·    विवाह के पश्चात् पति की नामर्दगी के कारण विवाह टूट सकता है। इनमें सबसे दिलचस्प बात तो यह हैद कि— दोनों दम्पतिये जीवन जीने के लिए तत्पर हों
·    कई बार अनेक धोखे और दबाबों के कारण संपन्न शादी भी टूट जाती है। इन धोखों में वह सभी धोखे शामिल हैं जिनके कारण पति-पत्नी दोनों के बीच किसी भी प्रकार की दूरी का निर्माण होता है।

हिंदू धर्म में दूसरा विवाहः एक कानूनी अपराध

हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि दूसरा विवाह किसी भी पति की पहली पत्नी और पत्नी का पहला पति जीवित रहते नहीं हो सकता। यदि ऐसा है तो इसे कानून के विरूद्ध अपराध माना जाएगा। कानून के अनुसार दूसरे विवाह के लिए उपर्युक्त स्थिति का होना अमान्य है। कानून कहता है कि किसी भी पति-पत्नी के जीते-जी दूसरा विवाह नहीं कर सकता। ऐसे में पहली पत्नी चाहे तो पति के खिलाफ थाने में या मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत दर्ज कर सकती है, ऐसे में पति को सात साल की कैद की सजा हो सकती है।

          यदि पहले पति या पत्नी के जीवित रहते हुए विवाह हो भी गया तो वैध नहीं होगा। अगर पत्नी दूसरे विवाह के लिए सहमति दे भी दे तब भी वह विवाह गैर-कानूनी ही होगा। ऐसी स्थिति में दूसरी पत्नी को वास्तव में पत्नी होने का कोई अधिकार नहीं मिलेगा और न ही उसे खर्चा प्राप्त करने का कोई अधिकार होगा। इसके साथ ही पति की संपत्ति में वह किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं रखेगी। हाँ, यदि पहली पत्नी की मौजूदगी दूसरी पत्नी से छिपाई जाए तो दूसरी पत्नी पति के खिलाफ धोखे का मुकदमा दर्ज कर मुआवजा प्राप्त कर सकती है। इसके साथ ही यदि वह किसी बच्चे को जन्म देती है तो उसे भी जायज संतान का तरह पिता की संपत्ति में सारे अधिकार मिलेंगे, जो जायज संतान को प्राप्त हैं।