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Thursday, September 24, 2020

मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय

25 सितम्बर/जन्म-दिवस            

      

एकात्म मानववाद के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय


सुविधाओं में पलकर कोई भी सफलता पा सकता है; पर अभावों के बीच रहकर शिखरों को छूना बहुत कठिन है। 25 सितम्बर, 1916 को जयपुर से अजमेर मार्ग पर स्थित ग्राम धनकिया में अपने नाना पण्डित चुन्नीलाल शुक्ल के घर जन्मे दीनदयाल उपाध्याय ऐसी ही विभूति थे।


दीनदयाल जी के पिता श्री भगवती प्रसाद ग्राम नगला चन्द्रभान, जिला मथुरा, उत्तर प्रदेश के निवासी थे। तीन वर्ष की अवस्था में ही उनके पिताजी का तथा आठ वर्ष की अवस्था में माताजी का देहान्त हो गया। अतः दीनदयाल का पालन रेलवे में कार्यरत उनके मामा ने किया। ये सदा प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होते थे। कक्षा आठ में उन्होंने अलवर बोर्ड, मैट्रिक में अजमेर बोर्ड तथा इण्टर में पिलानी में सर्वाधिक अंक पाये थे।


14 वर्ष की आयु में इनके छोटे भाई शिवदयाल का देहान्त हो गया। 1939 में उन्होंने सनातन धर्म कालिज, कानपुर से प्रथम श्रेणी में बी.ए. पास किया। यहीं उनका सम्पर्क संघ के उत्तर प्रदेश के प्रचारक श्री भाऊराव देवरस से हुआ। इसके बाद वे संघ की ओर खिंचते चले गये। एम.ए. करने के लिए वे आगरा आये; पर घरेलू परिस्थितियों के कारण एम.ए. पूरा नहीं कर पाये। प्रयाग से इन्होंने एल.टी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। संघ के तृतीय वर्ष की बौद्धिक परीक्षा में उन्हें पूरे देश में प्रथम स्थान मिला था।


अपनी मामी के आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी। उसमें भी वे प्रथम रहे; पर तब तक वे नौकरी और गृहस्थी के बन्धन से मुक्त रहकर संघ को सर्वस्व समर्पण करने का मन बना चुके थे। इससे इनका पालन-पोषण करने वाले मामा जी को बहुत कष्ट हुआ। इस पर दीनदयाल जी ने उन्हें एक पत्र लिखकर क्षमा माँगी। वह पत्र ऐतिहासिक महत्त्व का है। 1942 से उनका प्रचारक जीवन गोला गोकर्णनाथ (लखीमपुर, उ.प्र.) से प्रारम्भ हुआ। 1947 में वे उत्तर प्रदेश के सहप्रान्त प्रचारक बनाये गये।


1951 में डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने नेहरू जी की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों के विरोध में केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल छोड़ दिया। वे राष्ट्रीय विचारों वाले एक नये राजनीतिक दल का गठन करना चाहते थे। उन्होंने संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी से सम्पर्क किया। गुरुजी ने दीनदयाल जी को उनका सहयोग करने को कहा। इस प्रकार 'भारतीय जनसंघ' की स्थापना हुई। दीनदयाल जी प्रारम्भ में उसके संगठन मन्त्री और फिर महामन्त्री बनाये गये।


1953 के कश्मीर सत्याग्रह में डा. मुखर्जी की रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में मृत्यु के बाद जनसंघ की पूरी जिम्मेदारी दीनदयाल जी पर आ गयी। वे एक कुशल संगठक, वक्ता, लेखक, पत्रकार और चिन्तक भी थे। लखनऊ में राष्ट्रधर्म प्रकाशन की स्थापना उन्होंने ही की थी। एकात्म मानववाद के नाम से उन्होंने नया आर्थिक एवं सामाजिक चिन्तन दिया, जो साम्यवाद और पूँजीवाद की विसंगतियों से ऊपर उठकर देश को सही दिशा दिखाने में सक्षम है।


उनके नेतृत्व में जनसंघ नित नये क्षेत्रों में पैर जमाने लगा। 1967 में कालीकट अधिवेशन में वे सर्वसम्मति से अध्यक्ष बनायेे गये। चारों ओर जनसंघ और दीनदयाल जी के नाम की धूम मच गयी। यह देखकर विरोधियों के दिल फटने लगे। 11 फरवरी, 1968 को वे लखनऊ से पटना जा रहे थे। रास्ते में  किसी ने उनकी हत्या कर मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर लाश नीचे फेंक दी। इस प्रकार अत्यन्त रहस्यपूर्ण परिस्थिति में एक मनीषी का निधन हो गया।


Thursday, September 17, 2020

दैनिक जीवन में प्रचलित उर्दू के हिंदी शब्द


      #उर्दू                #हिंदी

01 ईमानदार       - निष्ठावान

02 इंतजार         - प्रतीक्षा

03 इत्तेफाक       - संयोग

04 सिर्फ            - केवल, मात्र

05 शहीद           - बलिदान

06 यकीन          - विश्वास, भरोसा

07 इस्तकबाल    - स्वागत

08 इस्तेमाल       - उपयोग, प्रयोग

09 किताब         - पुस्तक

10 मुल्क            - देश

11 कर्ज़             - ऋण

12 तारीफ़          - प्रशंसा

13 तारीख          - दिनांक, तिथि

14 इल्ज़ाम         - आरोप

15 गुनाह            - अपराध

16 शुक्रीया          - धन्यवाद, आभार

17 सलाम           - नमस्कार, प्रणाम

18 मशहूर           - प्रसिद्ध

19 अगर             - यदि

20 ऐतराज़          - आपत्ति

21 सियासत        - राजनीति

22 इंतकाम          - प्रतिशोध

23 इज्ज़त           - मान, प्रतिष्ठा

24 इलाका           - क्षेत्र

25 एहसान          - आभार, उपकार

26 अहसानफरामोश - कृतघ्न

27 मसला            - समस्या

28 इश्तेहार          - विज्ञापन

29 इम्तेहान          - परीक्षा

30 कुबूल             - स्वीकार

31 मजबूर            - विवश

32 मंजूरी             - स्वीकृति

33 इंतकाल          - मृत्यु, निधन 

34 बेइज्जती         - तिरस्कार

35 दस्तखत          - हस्ताक्षर

36 हैरानी              - आश्चर्य

37 कोशिश            - प्रयास, चेष्टा

38 किस्मत            - भाग्य

39 फै़सला             - निर्णय

40 हक                 - अधिकार

41 मुमकिन           - संभव

42 फर्ज़                - कर्तव्य

43 उम्र                  - आयु

44 साल                - वर्ष

45 शर्म                 - लज्जा

46 सवाल              - प्रश्न

47 जवाब              - उत्तर

48 जिम्मेदार          - उत्तरदायी

49 फतह               - विजय

50 धोखा               - छल

51 काबिल             - योग्य

52 करीब               - समीप, निकट

53 जिंदगी              - जीवन

54 हकीकत            - सत्य

55 झूठ                  - मिथ्या, असत्य

56 जल्दी                - शीघ्र

57 इनाम                - पुरस्कार

58 तोहफ़ा              - उपहार

59 इलाज               - उपचार

60 हुक्म                 - आदेश

61 शक                  - संदेह

62 ख्वाब                - स्वप्न

63 तब्दील              - परिवर्तित

64 कसूर                 - दोष

65 बेकसूर              - निर्दोष

66 कामयाब            - सफल

67 गुलाम                - दास

68 जन्नत                -स्वर्ग 

69 जहन्नुम             -नर्क

70 खौ़फ                -डर

71 जश्न                  -उत्सव

72 मुबारक             -बधाई/शुभेच्छा

73 लिहाजा़             -इसलीए

74 निकाह             -विवाह/लग्न

75 आशिक            -प्रेमी 

76 माशुका             -प्रेमिका 

77 हकीम              -वैध

78 नवाब               -राजसाहब

79 रुह                  -आत्मा 

80 खु़दकुशी          -आत्महत्या 

81 इज़हार             -प्रस्ताव

82 बादशाह           -राजा/महाराजा

83 ख़्वाहिश          -महत्वाकांक्षा

84 जिस्म             -शरीर/अंग

85 हैवान             -दैत्य/असुर

86 रहम              -दया

87 बेरहम            -बेदर्द/दर्दनाक

88 खा़रिज           -रद्द

89 इस्तीफ़ा          -त्यागपत्र 

90 रोशनी            -प्रकाश 

91मसीहा             -देवदुत

92 पाक              -पवित्र

93 क़त्ल              -हत्या 

94 कातिल           -हत्यारा

95 मुहैया             - उपलब्ध

96 फ़ीसदी           - प्रतिशत

97 कायल           - प्रशंसक

98 मुरीद             - भक्त

99 कींमत           - मूल्य (मुद्रा में)

100 वक्त            - समय

101 सुकून        - शाँति

102 आराम       - विश्राम

103 मशरूफ़    - व्यस्त

104 हसीन       - सुंदर

105 कुदरत      - प्रकृति

106 करिश्मा    - चमत्कार

107 इजाद       - आविष्कार

108 ज़रूरत     - आवश्यक्ता

109 ज़रूर       - अवश्य

110 बेहद        - असीम

111 तहत       - अनुसार


इनके अतिरिक्त हम प्रतिदिन अनायास ही अनेक उर्दू शब्द प्रयोग में लेते हैं, कारण है ये बाॅलिवुड और मीडिया जो एक इस्लामी षड़यंत्र के अनुसार हमारी मातृभाषा पर ग्रहण लगाते आ रहे हैं।


हिन्दी हमारी राजभाषा एवं मातृभाषा हैं इसका सम्मान करें, भाषा बचाईये, संस्कृति बचाईये।

Tuesday, September 15, 2020

महात्मा गांधी और हिन्दी

 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और हिन्दी 


जब हम गांधी को शांति अहिंसा और मानवीय प्रेम के अग्रदूत के रूप में स्मरण करते हैं तो उनका एक उज्ज्वल एवं अलग विश्व महमनवीय रूप सामने झलकने लगता है। 

गांधी जी ने अपने दक्षिण अफ्रीका के प्रवास काल में ही भारत के संदर्भ में तथा विदेशों में रह रहे भारतियों के संदर्भ में हिन्दी को भारत की संपर्क भाषा के रूप में विकसित हो सकने वाली भाषा के रूप में पहचान लिया था। 

सन 1916 में राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन लखनऊ में हुआ। उसमें पहली बार महात्मा गांधी भी सम्मिलित हुये थे। अब तक काँग्रेस-अधिवेशन की समस्त कार्यवाई और भाषण अँग्रेजी में हुआ करते थे। 

गांधी जी ने पत्रकारों तथा अन्य सदस्यों के बहुत विरोध करने पर भी अपना भाषण हिन्दी में किया। दक्षिण भारत में इस हिन्दी का प्रसार एक आंदोलन के रूप में स्वतन्त्रता संग्राम के साथ महात्मा गांधी की प्रेरणा से 20 वीं सदी में प्रारम्भ हुआ।

“हिन्दी-भाषी लोगों को दक्षिण की भाषा सीखने की जितनी जरूरत है उसकी अपेक्षा दक्षिण वालों को हिन्दी सीखने की आवश्यकता ही अधिक है। सारे हिंदुस्तान में हिन्दी बोलने और समझने वालों की संख्या दक्षिण की भाषा बोलने वालों से दुगुनी है। एक प्रांत का दूसरे प्रांत से संबंध जोड़ने की भाषा तो हिन्दी या हिंदुस्तानी ही हो सकती है।” 

 गांधी जी से प्रभावित होकर हिन्दी-साहित्य सम्मेलन-प्रयाग ने सन 1918 में इंदौर में होने वाले हिन्दी सम्मेलन के अधिवेशन का सभापति गांधी को निर्वाचित किया। गांधी जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में दक्षिण भारत के तमिल,तेलगु,मलयालम,कन्नड भाषी प्रदेशों में हिन्दी प्रचार की अवश्यकता बताई और उसके लिए पैसा एकट्ठा करने की अपील की। 

गांधी जी के मांग पर इंदौर नरेश- महाराज यशवंत राव होल्कर और नगर- सेठ हुकुमचंद जी ने 10-10 हजार रुपए हिन्दी-प्रचार-कार्य की सहायता में दिये। इस अधिवेशन में यह भी प्रस्ताव स्वीकृत हुआ कि 6 युवक हिन्दी सीखने के लिए प्रयाग भेजे जाएँ और उतर भारत के 6 युवक दक्षिण कि भाषाओं को सीखने तथा हिन्दी का प्रचार करने के लिए दक्षिण भारत भेजे जायें।

सन1918 में मद्रास ‘भारत सेवा संघ’(इंडियन सर्विस लीग) के हिन्दी-प्रेमी युवकों ने गांधी जी को लिखा हम हिन्दी सीखना चाहते हैं, हमारे लिए एक हिन्दी प्रचारक भेजा जाए। गांधी ने अपने पुत्र श्री देवदास गांधी तथा स्वामी स्त्यदेव को,जो उस समय 18 वर्ष के ही थे, शीघ्र ही हिन्दी प्रचार के लिए मद्रास भेजा। वहा वे लोग सबसे पहले उन बुद्धजीवियों से संपर्क किया जिनके मन में विशाल एवं उदार राष्ट्रीय भाव थे। उनमें से प्रमुख थे मोटूरी सत्यनारायण, श्री हरिकेश शर्मा, पंडित हरिदत्त शर्मा, के.एम. मुंशी,शिवराम शर्मा,पंडित सिद्धार्थ नाथ पंत,तथा श्री एस.आर. शास्त्री आदि। वहाँ सर्वसम्मति से गोखले हाल में डॉ. एनी वेसेंट की अध्यक्षयता में एक बैठक हुई और एक हिन्दी संस्था की स्थापना करने का निर्णय लिया गया। 

एक संस्था की स्थापना की गई जिसका नाम ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन-प्रचार-कार्यालय’ रखा गया तथा 1927 तक इसी नाम का प्रयोग किया जाता रहा किन्तु बाद में के सलाह से इस प्रचार-कार्यालय का नाम परिवर्तित करके दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा,मद्रास कर दिया गया। अतः 1927 से सम्मेलन का उक्त कार्यालय स्वतंत्र रूप से एक नई संस्था बन गई। 

लगभग 10 वर्ष के अनंतर पुनः सम्मेलन ने मद्रास की भांति हिन्दी-प्रचार के लिए एक दूसरा केंद्र वर्धा में प्रवर्तित किया। सन1936 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का 25वां अधिवेशन नागपुर में देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद जी की अध्यक्षता में हुआ। उसी अधिवेशन में गांधी की सलाह से हिन्दी-प्रचार-समिति वर्धा का संगठन किया गया,जिसका उद्देश्य उन चार अहिंदी भाषी प्रदेशों को छोडकर,जिनमें हिन्दी का प्रचार दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा (मद्रास) कर रही थी, शेष अहिंदी भाषी प्रदेशों में हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना सुनिश्चित किया गया।

 1938 में इसका नाम ‘राष्ट्रभाषा-प्रचार-समिति वर्धा केआर दिया गया। उसकी शाखाएँ भारत के पूर्वी-पश्चिमी सभी अहिंदी भाषी प्रदेशों में हैं और यह संस्था अब भी हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का अंग है। इस राष्ट्रभाषा प्रचार-समिति वर्धा के सहयोग करने वाली 16 ऐसी अंगभूत संस्थाएं हैं, जो प्रदेश-स्तर की राष्ट्रभाषा-प्रचार समितियां हैं।   

इन बड़ी संस्थाओं की प्रेरणा से समस्त दक्षिण भारत में हिन्दी-प्रचार ने तीव्र आंदोलन का रूप ले लिया। राष्ट्र के सभी कर्णधार,जो देश की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे थे,उनके सामने यह समस्या थी कि स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद समूचे देश की राष्ट्रभाषा, राष्ट्रीय कार्य-व्यवहार की भाषा कौन होगी? इसका उतर था-हिन्दी। अतः हिन्दी के प्रति समूचे देश में, विशेषतः दक्षिण भारत में जो आकर्षण पैदा हुआ, वह राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत था। हिन्दी सीखना या सिखाना एक राष्ट्रीय कर्तव्य पालन था। फ़्ल्स्वरूप उक्त बड़ी संस्थाओं के कार्य-क्षेत्र अत्यंत विस्तृत होते रहे और हिन्दी प्रचार को और भी सुव्यवस्थित करने के लिए प्रदेशीय स्तर पर अन्य महत्वपूर्ण संस्थाओं का भी जन्म हुआ।

उनमें मुख्य नाम ये हैं-1. हिन्दी प्रचार सभा, हैदराबाद (स्थापना 1935 ई.), 2. मैसूर हिन्दी प्रचार-परिषद, बंगलौर (1943), 3.महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे (1945), 4.हिंदुस्तानी प्रचार सभा, वर्धा(1942), 5.केरल हिन्दी प्रचार सभा, तिरुअनंतपुरम, 6.साहित्यनुशीलन समिति, मद्रास, 7.कर्नाटक हिन्दी-प्रचार सभा, धारवाड़। 

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा मद्रास को अपने हिन्दी-प्रचार कार्य में राष्ट्र के प्रमुख नेताओं का सहयोग मिलता रहा है। महात्मा गांधी इसके आजीवन सभापति रहे। मद्रास के प्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक ‘हिन्दू’ के संपादक श्री ए. रंगास्वामी अय्यंगार उपसभापति। इसका प्रचार-कार्य योजनाबद्ध हुआ। इसका कार्य-क्षेत्र मद्रास, आंध्र, मैसूर और केरल अर्थात तमिल, तेलगु, कन्नड और मलयालम भाषा-भाषी प्रदेश रहे हैं। 

दक्षिण भारत में हिन्दी का जो प्रचार-कार्य विगत दो-तीन दशाब्दियों में हुआ और अब भी हो रहा है, उसकी मुख्य प्रवृतियां ये हैं-1.हिन्दी प्रचारकों का संगठन, 2.हिन्दी-शिक्षण विद्यालयों की स्थापना, 3.परीक्षाओं का संचालन, 4.हिन्दी के प्रकाशन-कार्य, पत्रिकाएँ तथा पुस्तकें, 5.हिन्दी प्रशिक्षण के सत्र, 6.वाक-स्पर्धा, लेखन-स्पर्धा, 7.नाटक-अभिनय, 8.पुरस्कार का आयोजन, 9.पदवीदान समारोह। 

      प्रचारकों का बहुत बड़ा संगठन दक्षिण भारत हिन्दी-प्रचार सभा मद्रास तथा राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा का है। उनके अनुरूप ही इनकी परीक्षाओं में सम्मिलित परीक्षार्थीयों की संख्या भी अत्यधिक है। इन संस्थाओं ने हिन्दी की प्रारम्भिक परीक्षा से लेकर उच्चतम परीक्षाओं का आयोजन किया है। मद्रास की दक्षिण भारत प्रचार सभा 7 परीक्षाएँ और वर्धा की समिति 13 प्रकार की परीक्षाएँ संचालित करती है। 

इन परीक्षाओं में सवा लाख से अधिक तथा समिति की परीक्षाओं में सवा दो लाख से अधिक परीक्षार्थी सम्मिलित होते हैं। समिति के प्रचारकों की संख्या लगभग सात हजार है। हिन्दी-प्रचार-सभा हैदराबाद की परीक्षाओं में भी चालीस हजार के लगभग परीक्षार्थी सम्मिलित होते हैं। 

     संस्थाओं के अपने हिन्दी विद्यालय भी हैं, जिनके द्वारा वे हिन्दी वे शिक्षण कार्य को गति देते हैं। वर्धा की समिति के सहयोग से उसकी अंगभूत प्रादेशिक समितियां भी विद्यालयों का संचालन करती है। सन 1932 के अकड़ों के अनुसार समिति के तत्वावधान में 534 राष्ट्रभाषा विद्यालय और 36 महाविद्यालय संचालित होते रहे हैं। पाठ्यक्रम की दृष्टि से पुस्तकों का प्रकाशन भी संस्थाओं ने किया। उनकी मासिक पत्रिकाएँ भी निकलती हैं। 

पत्रिकाओं के मुख्य नाम हैं- राष्ट्रभारती (वर्धा), हिन्दी-प्रचार-समाचार(मद्रास), राष्ट्रवाणी(पूना), राष्ट्र-वीणा(गुजरात), केरल-ज्योति(तिरुअनंतपुरम)। हिन्दी प्रचार-सभा हैदराबाद के ‘अजन्ता’ मासिक का प्रकाशन अब बंद हो चुका है। 

वर्ष 1918 में ‘दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा’ की स्थापना तब मद्रास के नाम से प्रसिद्ध चेन्नई में की गयी। आज यह 11 परास्नातक केंद्र, 33 शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, पांच सीबीएसई स्कूल और कई प्रांतीय सभाएं संचालित करती है। गांधी ने कहा था कि सभा अधिक से अधिक लोगों को हिंदी पढ़ने, लिखने और बोलने में सक्षम बनायेगी। 

हिंदी में प्रकाशित प्रचार सभा अभिलेखागार के अनुसार गांधी ने 1946 में छात्रों के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया था। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे संदेह है कि मैं जो कह रहा हूं, वह आपलोग समझ पा रहे हैं। लेकिन मेरे प्रति आपके मन में गहरा प्रेम है और इसलिए आप मुझे बड़े धैर्य से सुन रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन फिर भी अधिक से अधिक लोगों को हिंदुस्तानी सीखनी चाहिए। यह कोई कठिन भाषा नहीं है दक्षिण भारतीय लोग बुद्धिमान और प्रतिभावान हैं’’

इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रचार सभा ने बड़ी निष्ठा से गांधी की सलाह का अनुसरण पर मुश्किलों का भी सामना किया। हजारों प्रचारक आज तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में काम करते हैं। 

अंततः यह कहा जा सकता है कि गांधी जी दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार हेतु जो कार्य किए वह भारत को एक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। गांधी जी कभी भी क्षेत्रीय भाषाओं को छोडने या न सीखने या न जानने के विषय में नहीं कहते है, वह क्षेत्रीय भाषाओं को भी उतना ही महत्व देते थे जितना की राष्ट्रीय भाषा को । उनके प्रयास से ही आज भारत में हिन्दी की महत्ता को ज्यादा बढ़ावा मिला है।

क्योंकि गांधी जी प्रयोग कर्ता थे इसलिए हिन्दी प्रचार हेतु वह सबसे पहले प्रयोग अपने पुत्र को दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार हेतु भेजने से करते हैं। आज दक्षिण भारत में जो महिला हिन्दी से स्नातक की हुई होती है उसके विषय में जो शादी करने वाले आते है वो बहुत गर्व महसूस करते है कि उनकी बहू हिन्दी से स्नातक या परास्नातक है। गांधी ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा या राजभाषा में चुनकर राष्ट्र को एक करने में बहुत योगदान दिये है। गांधी के हिन्दी के प्रति योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। 


Sunday, September 13, 2020

योग भगाए रोग :वीरभद्रासन

  योग भगाए रोग :वीरभद्रासन है


शरीर को मजबूती देने वाले इस आसन के जानिये लाभ और योग विधि


नाम के रूप में दर्शाया गया है, यह योग मुद्रा आपके शरीर की मूल शक्ति बनाता है और आपकी मांसपेशियों के धीरज को बढ़ाता है। इस मुद्रा का नाम वीरभद्र, एक भयंकर योद्धा, हिंदू भगवान शिव का अवतार के नाम पर रखा गया है।योद्धा वीरभद्र की कहानी, उपनिषद की अन्य कहानियों की तरह, जीवन में प्रेरणा प्रदान करती है। यह आसन हाथों, कंधो ,जांघो एवं कमर की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है।


*वीरभद्रासन के लाभ* 


- छाती और फेफड़ों, कंधे और गर्दन, पेट, ग्राय्न में खिचाव लाता है।


- कंधों, बाज़ुओं, और पीठ की मांसपेशियों को मज़बूत करता है।


- जांघों, पिंडलियों, और टखनों को मज़बूत करता है और उनमें खिचाव लाता है।


- वीरभद्रासन साएटिका से राहत दिलाता है।


*वीरभद्रासन करने की विधि*


ताड़ासन में खड़े हो जायें। 

श्वास अंदर लें और 3 से 4 फीट पैर खोल लें। 

अपने बायें पैर को 45 से 60 दर्जे अंदर को मोड़ें, और दाहिने पैर को 90 दर्जे बाहर को मोड़ें। 

बाईं एड़ी के साथ दाहिनी एड़ी संरेखित करें। 

साँस छोड़ते हुए अपने धड़ को दाहिनी ओर 90 दर्जे तक घुमाने की कोशिश करें। 

आप शायद पूरी तरह धड़ ना घुमा पायें। अगर ऐसा हो तो जितना बन सके, उतना करें। 

धीरे से अपने हाथ उठाएँ जब तक हाथ सीधा आपके धड़ की सीध में ना आ जायें। 

हथेलियों को जोड़ लें और छत की ओर उंगलियों को पॉइंट करें।

ध्यान रखें की आपकी पीठ सीधी रहे। अगर पीठ मुडी होगी तो पीठ के निचले हिस्से में समय के साथ दर्द बैठ सकता है। 

अपने बाईं एड़ी को मज़बूती से ज़मीन पर टिकाए रखें और दाहिने घुटने को मोड़ें जब तक की घुटना सीधा टखने की ऊपर ना आ जाए। 

अगर आप में इतना लचीलापन हो तो अपनी जाँघ को ज़मीन से समांतर कर लें। 

अपने सिर को उठायें और दृष्टि को उंगलियों पर रखें। 

कुल मिला कर पाँच बार साँस अंदर लें और बाहर छोड़ें ताकि आप आसन में 30 से 60 सेकेंड तक रह सकें। 

धीरे धीरे जैसे आपके शरीर में ताक़त और लचीलापन बढ़ने लगे, आप समय बढ़ा सकते हैं 

90 सेकेंड से ज़्यादा ना करें। 

जब 5 बार साँस लेने के बाद आप आसान से बाहर आ सकते हैं।

आसन से बाहर निकलने के लिए सिर नीचे कर लें, फिर दाहिनी जाँघ को उठायें, हाथ नीचे कर लें, धड़ को वापिस सीधा कर लें और पैरों को वापिस अंदर ले आयें

आसन को ख़तम ताड़ासन में करें। 

दाहिनी ओर करने के बाद यह सारे स्टेप बाईं ओर भी करें।


*वीरभद्रासन में सावधानियां*


उच्च रक्तचाप या दिल की समस्याओं से पीड़ित व्यक्ति ये आसन ना करें 


गर्दन की चोट या वर्तमान में गर्दन का दर्द हो तो आसन से बचे 


ये आसन ना करें जब रीढ़ की हड्डी में किसी भी प्रकार की तकलीफ हो।


गर्भवती महिलाओं को इस आसन से फायदा होगा, खासकर यदि वे अपने दूसरे और तीसरे तिमाही में हैं, लेकिन केवल तभी वे नियमित रूप से योग का अभ्यास कर रहे हैं।



सदाचार बनाम समलैंगिकता: एक नजर

 सदाचार बनाम समलैंगिकता


🔷सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैगिंकता को धारा 377 के अंतर्गत अपराध की श्रेणी से हटा दिया है। अपने आपको सामाजिक कार्यकर्ता कहने वाले, आधुनिकता का दामन थामने वाले एक विशेष बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा सुप्रीम कोर्ट क निर्णय पर बहुत प्रसन्न हो रहे है। उनका कहना है कि अंग्रेजों द्वारा 1861 में बनाया गया कानून आज अप्रासंगिक है। धारा 377 को यह जमात सामाजिक अधिकारों में भेदभाव और मौलिक अधिकारों का हनन बताती है। समलैगिंकता का समर्थन करने वालो का पक्ष का कहना है कि इससे HIV कि रोकथाम करने में रुकावट होगी क्यूंकि समलैगिंक समाज के लोग रोक लगने पर खुलकर सामने नहीं आते।


🔷अधिकतर धार्मिक संगठन धारा 377 के हटाने के विरोध में हैं। उनका कहना है कि यह करोड़ो भारतीयों का जो नैतिकता में विश्वास रखते हैं उनकी भावनाओं का आदर हैं। आईये समलैंगिकता को प्रोत्साहन देना क्यों गलत है इस विषय की तार्किक विवेचना करें।


🔷हमें इस तथ्य पर विचार करने की आवश्यकता है कि अप्राकृतिक सम्बन्ध समाज के लिए क्यों अहितकारक है। अपने आपको आधुनिक बनाने की हौड़ में स्वछन्द सम्बन्ध की पैरवी भी आधुनिकता का परिचायक बन गया हैं। सत्य यह हैं कि इसका समर्थन करने वाले इसके दूरगामी परिणामों की अनदेखी कर देते हैं।


 प्रकृति ने मानव को केवल और केवल स्त्री-पुरुष के मध्य सम्बन्ध बनाने के लिए बनाया है। इससे अलग किसी भी प्रकार का सम्बन्ध अप्राकृतिक एवं निरर्थक है। चाहे वह पुरुष-पुरुष के मध्य हो, स्त्री स्त्री के मध्य हो। वह विकृत मानसिकता को जन्म देता है। उस विकृत मानसिकता कि कोई सीमा नहीं है। 


उसके परिणाम आगे चलकर बलात्कार (Rape) , सरेआम नग्न होना (Exhibitionism), पशु सम्भोग (Bestiality), छोटे बच्चों और बच्चियों से दुष्कर्म (Pedophilia), हत्या कर लाश से दुष्कर्म (Necrophilia), मार पीट करने के बाद दुष्कर्म (Sadomasochism) , मनुष्य के शौच से प्रेम (Coprophilia) और न जाने किस-किस रूप में निकलता हैं। अप्राकृतिक सम्बन्ध से संतान न उत्पन्न हो सकना क्या दर्शाता है? सत्य यह है कि प्रकृति ने पुरुष और नारी के मध्य सम्बन्ध का नियम केवल और केवल संतान की उत्पत्ति के लिए बनाया था। 


आज मनुष्य ने अपने आपको उन नियमों से ऊपर समझने लगा है। जिसे वह स्वछंदता समझ रहा है। वह दरअसल अज्ञानता है। भोगवाद मनुष्य के मस्तिष्क पर ताला लगाने के समान है। भोगी व्यक्ति कभी भी सदाचारी नहीं हो सकता। वह तो केवल और केवल स्वार्थी होता है। इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य को सामाजिक हितकारक नियम पालन का करने के लिए बाध्य होना चाहिए। जैसे आप अगर सड़क पर गाड़ी चलाते है। तब आप उसे अपनी इच्छा से नहीं अपितु ट्रैफिक के नियमों को ध्यान में रखकर चलाता है। वहाँ पर क्यों स्वछंदता के मौलिक अधिकार का प्रयोग नहीं करता? अगर करेगा तो दुर्घटना हो जायेगी। जब सड़क पर चलने में स्वेच्छा की स्वतंत्रता नहीं है। तब स्त्री पुरुष के मध्य संतान उत्पत्ति करने के लिए विवाह व्यवस्था जैसी उच्च सोच को नकारने में कैसी बुद्धिमत्ता है?


🔷कुछ लोगो द्वारा समलैंगिकता के समर्थन में खजुराओ की नग्न मूर्तियाँ अथवा वात्सायन का कामसूत्र को भारतीय संस्कृति और परम्परा का नाम दिया जा रहा है। जबकि सत्य यह है कि भारतीय संस्कृति का मूल सन्देश वेदों में वर्णित संयम विज्ञान पर आधारित शुद्ध आस्तिक विचारधारा हैं।


🔷भौतिकवाद अर्थ और काम पर ज्यादा बल देता हैं। जबकि अध्यातम धर्म और मुक्ति पर ज्यादा बल देता हैं । वैदिक जीवन में दोनों का समन्वय हैं। एक ओर वेदों में पवित्र धनार्जन करने का उपदेश है। दूसरी ओर उसे श्रेष्ठ कार्यों में दान देने का उपदेश है। एक ओर वेद में सम्बन्ध केवल और केवल संतान उत्पत्ति के लिए है। दूसरी तरफ संयम से जीवन को पवित्र बनाये रखने की कामना है । एक ओर वेद में बुद्धि की शांति के लिए धर्म की और दूसरी ओर आत्मा की शांति के लिए मोक्ष (मुक्ति) की कामना है। 


धर्म का मूल सदाचार है। अत: कहाँ गया है कि आचार परमो धर्म: अर्थात सदाचार परम धर्म है। आचारहीन न पुनन्ति वेदा: अर्थात दुराचारी व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। अत: वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरित्र निर्माण, ब्रह्मचर्य आदि पर बहुत बल दिया गया है।


🔷जो लोग यह कुतर्क देते हैं कि समलैंगिकता पर रोक से AIDS कि रोकथाम होती है। उनके लिए विशेष रूप से यह कहना चाहूँगा कि समाज में जितना सदाचार बढ़ेगा, उतना समाज में अनैतिक सम्बन्धों पर रोकथाम होगी। आप लोगों का तर्क कुछ ऐसा है कि आग लगने पर पानी कि व्यवस्था करने में रोक लगने के कारण दिक्कत होगी, हम कह रहे हैं कि आग को लगने ही क्यूँ देते हो? भोग रूपी आग लगेगी तो नुकसान तो होगा ही होगा। कहीं पर बलात्कार होंगे, कहीं पर पशुओं के समान व्यभिचार होगा, कहीं पर बच्चों को भी नहीं बक्शा जायेगा। इसलिए सदाचारी बनो, नाकि व्यभिचारी।


🔷एक कुतर्क यह भी दिया जा रहा है कि समलैंगिक समुदाय अल्पसंख्यक है, उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए। मेरा इस कुतर्क को देने वाले सज्जन से प्रश्न है कि भारत भूमि में तो अब अखंड ब्रह्मचारी भी अल्प संख्यक हो चले है। उनकी भावनाओं का सम्मान रखने के लिए मीडिया द्वारा जो अश्लीलता फैलाई जा रही हैं उनपर लगाम लगाना भी तो अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा के समान है।


🔷एक अन्य कुतर्की ने कहा कि पशुओं में भी समलैंगिकता देखने को मिलती हैं। मेरा उस बंधू से एक ही प्रश्न हैं कि अनेक पशु बिना हाथों के केवल जिव्हा से खाते हैं, आप उनका अनुसरण क्यूँ नहीं करते? अनेक पशु केवल धरती पर रेंग कर चलते है आप उनका अनुसरण क्यूँ नहीं करते ? चकवा चकवी नामक पक्षी अपने साथी कि मृत्यु होने पर होने प्राण त्याग देता हैं, आप उसका अनुसरण क्यूँ नहीं करते?


🔷ऐसे अनेक कुतर्क हमारे समक्ष आ रहे हैं जो केवल भ्रामक सोच का परिणाम हैं।


🔶जो लोग भारतीय संस्कृति और प्राचीन परम्पराओं को दकियानूसी और पुराने ज़माने कि बात कहते हैं वे वैदिक विवाह व्यवस्था के आदर्शों और मूलभूत सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं। चारों वेदों में वर-वधु को महान वचनों द्वारा व्यभिचार से परे पवित्र सम्बन्ध स्थापित करने का आदेश है। 


ऋग्वेद के मंत्र के स्वामी दयानंद कृत भाष्य में वर वधु से कहता है- हे स्त्री! मैं सौभाग्य अर्थात् गृहाश्रम में सुख के लिए तेरा हस्त ग्रहण करता हूँ और इस बात की प्रतिज्ञा करता हूँ कि जो काम तुझको अप्रिय होगा उसको मैं कभी ना करूँगा। ऐसे ही स्त्री भी पुरुष से कहती है कि जो कार्य आपको अप्रिय होगा वो मैं कभी न करूँगी और हम दोनों व्यभिचारआदि दोषरहित होके वृद्ध अवस्था पर्यन्त परस्पर आनंद के व्यवहार करेंगे। 

रोचक बात तो यह है कि विद्वानों ने मुझको तेरे लिए और तुझको मेरे लिए दिया हैं, हम दोनों परस्पर प्रीति करेंगे तथा उद्योगी हो कर घर का काम अच्छी तरह और मिथ्याभाषण से बचकर सदा धर्म में ही वर्तेंगे। सब जगत का उपकार करने के लिए सत्यविद्या का प्रचार करेंगे और धर्म से संतान को उत्पन्न करके उनको सुशिक्षित करेंगे। हम दूसरे स्त्री और दूसरे पुरुष से मन से भी व्यभिचार ना करेगे।


🔶एक और गृहस्थ आश्रम में इतने उच्च आचार और विचार का पालन करने का मर्यादित उपदेश हैं , दूसरी ओर पशु के समान स्वछन्द अमर्यादित सोच हैं। पाठक स्वयं विचार करे कि मनुष्य जाति कि उन्नति उत्तम गृहस्थी बनकर समाज को संस्कारवान संतान देने में हैं अथवा पशुओं के समान कभी इधर कभी उधर मुँह मारने में हैं।


🔷समलैंगिकता एक विकृत सोच है, मनोरोग है, बीमारी है। इसका समाधान इसका विधिवत उपचार है। नाकि इसे प्रोत्साहन देकर सामाजिक व्यवस्था को भंग करना है। इसका समर्थन करने वाले स्वयं अँधेरे में है औरो को भला क्या प्रकाश दिखायेंगे। कभी समलैंगिकता का समर्थन करने वालो ने भला यह सोचा है कि अगर सभी समलैंगिक बन जायेंगे तो अगली पीढ़ी कहाँ से आयेगी? सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को दंड की श्रेणी से बाहर निकालने का हम पुरजोर असमर्थन करते है।

Thursday, September 3, 2020

भारतीय इतिहास के प्रमुख नरसंहार


भारतीय इतिहास के कुछ प्रमुख कत्लेआम/नरसंहार निम्न हैं-


1- दिल्ली का नरसंहार 1265 ई दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन बलबन द्वारा मेवाड़ के राजपूतों को पूर्णतया नष्ट कर दिया गया था, इसमें एक लाख हिन्दूओं की जान गयी थी।

2- बंगाल का नरसंहार 1353- फिरोज शाह तुगलक द्वारा एक लाख 90 हजार हिंदूओं का कत्लेआम।

3- दिल्ली नरसंहार 1398 ई- तैमूर लंग के सैनिकों द्वारा 1 लाख हिन्दूओं का कत्ल।

4- चित्तौड़गढ़ का नरसंहार 1568- उदयपुर में 30 हजार नागरिकों का कत्ल और 8 हजार औरतों का जौहर अकबर का शासन।

5 उत्तर भारत का नरसंहार 1738–40 - पर्शियन आक्रमणकारी नादिरशाह द्वारा मुगल साम्राज्य पर हमला 3 लाख भारतियों का कत्ल।

6- पानीपत 1761 अफगानों द्वारा 22 हजार मराठा औरतों और बच्चों का कत्ल।

7. Bangal femine 1943 to 1944 मरने वालों की संख्या 25 लाख से 35 लाख ।

7- कलकत्ता में दंगे 1946- आल इंडिया मुस्लिम लीग द्वारा प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस में 10 हजार हिन्दू मारे गये।

8- भारत का विभाजन 1947 -20 लाख लोगों का कत्लेआम,सिखों और हिन्दूओं का नरसंहार पश्चिमी पंजाब में और मुसलमानों का कत्लेआम पूर्व पंजाब में।

9- ब्राम्हणों का नरसंहार 1948 - महात्मा गांधी की हत्या के बाद पश्चिम महाराष्ट्र में चितपावन ब्राम्हणों का नरसंहार

10- सिखों का नरसंहार 1984- इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और अन्य जगहों पर 8000 सिखों का कत्ल।

11- गोधरा हत्याकांड 2002 - 27 फरवरी 2002 को ट्रेन में आग लगाकर 59 हिन्दूओं का कत्ल, 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद में दंगे हुए जिसमें 790 मुस्लिम और 254 हिंदू मारे गए।

Wednesday, September 2, 2020

नई शिक्षा नीति: बेसिक शिक्षा की कुछ न समझ आने वाली बातें

 

नई शिक्षा नीति: बेसिक शिक्षा की कुछ न समझ आने वाली बातें

  • जब किसी शिक्षक को बैंक में जाना होगा तो वह किस समय जाएगा?
  • शिक्षक 8 बजे स्कूल जाएगा और 3 बजे स्कूल बंद होने के बाद 30 मिनट और यानी 3:30 तक स्कूल में रहेगा और उसके बाद स्कूल बंद करके बैंक जाएगा तो 4 बजे तक बैंक बंद हो जाएगा तो शिक्षक बैंक का काम करेगा कब?
  • जबकि वह बैंक का काम भी स्कूल के बैंक वाला काम ही है


क्या अब शिक्षक स्कूल के काम के लिए अलग से छुट्टी ले जो उसकी खुद की छुट्टी है?

  • शिक्षक राशन लेने कब जाए? किस टाइम जाए स्कूल टाइम जाना नहीं है।
  • स्कूल खुलने के पहले राशन लेने के लिए वाहन और उसको स्कूल लेकर आना संभव नहीं है।
  • स्कूल बंद करने के बाद अगर ये काम किया जाए तो न तो टाइम से कोटेदार मिलेंगे और न ही सही टाइम पर वाहन और अगर ये सब मिल भी गया तो शिक्षक कितने टाइम तक स्कूल पर रहेगा उसकी कोई सीमा नहीं है।
  • प्रधान से किसी काम (mdm चेक/हस्ताक्षर) को करने किस टाइम जाया जाए?
  • सुबह स्कूल सही टाइम पर पहुंचने की टेंशन और शाम में 4 बजे के बाद जल्दी कोई प्रधान मिलता नहीं है और अगर काम सही टाइम पर न हो तो वेतन रोकने की धमकी अलग से हर वक्त मिलती रहती है। 


  • आज भी बहुत से स्कूलों में गैस की डिलीवरी सही टाइम पर नहीं होती। सिलेंडर लेने जाना होता है ये काम किस टाइम किया जाए? 
  • 4 बजे तक एजेन्सी बंद और सन्डे को तो वैसे भी बंद रहती है। सिलेंडर न आए तो खाना न बन पाए, वेतन रुके और सिलेंडर लेने जाओ तो भी वेटक रुके। 
  • सन्डे सिलेंडर  को मिलेगा  शिक्षक करे तो क्या करे कोई तो समझाए।


  • किताब/जूता/बैग/स्वेटर आदि स्कूल तक पहुंचाने का टेंडर होता है। पर स्कूल तक पहुंचती कैसे है ये चीज़ें ये सब लोग जानते है। 
  • ये सब समय से स्कूल में न मिले तो भी शिक्षक का ही वेतन रुकेगा।


  • यह जो हर दिन कोई न कोई सूचना विभाग द्वारा मांगी जाती है वो कैसे भेजी जाए?और किस समय शिक्षक उस सूचना को विभाग को दे इसका कोई समय है? 
  • अगर सूचना न दे तो आदेश की अवहेलना और वेतन रुकेगा ।


  • न तो प्राथमिक विद्यालयों में कोई चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है न कोई स्थाई गार्ड।
  • ऐसी स्थिति में बहुत से काम खुद शिक्षक को ही करने होते हैं तो वह काम शिक्षक किस समय में करे?


  • स्कूल टाइम में शिक्षक का इंटरनेट चलाना प्रतिबंधित है। ऐसा विभाग और सरकार बोलती है
  • पर विभाग सारी सूचना वॉट्सएप और इंटरनेट पर ही मांगता है। एक भी पत्र स्कूल नहीं आता जो भी काम सब व्हाट्स ऐप पर ही होता है तो शिक्षक करे तो क्या करे?


हम सरकार की हर बात मानने को तैयार हैं बल्कि हमें इसकी खुशी होगी। पर सरकार शिक्षक से सिर्फ़ शिक्षा देने का ही काम करवाए और कुछ नहीं। इससे हमारी छवि भी सरकार और समाज की नज़रों में अच्छी होगी और हमारी नजर में सबकी।