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Friday, July 19, 2024

डीयू में बीटेक करने वाले छात्र हिंदी-संस्कृत पढ़ेंगे

डीयू में बीटेक करने वाले छात्र हिंदी-संस्कृत पढ़ेंगे भारत सरकार की पहल नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रौद्योगिकी संकाय के अंतर्गत बीटेक के विद्यार्थी अब कंप्यूटर पर हिंदी और संस्कृत भाषाओं का तकनीकी ज्ञान भी लेंगे। क्षमता संवर्धन पाठ्यक्रम (एईसी) के तहत हिन्दी और संस्कृत के लिए दो पेपर एईसी-हिंदी भाषा और तकनीक एवं एईसी-संस्कृत लैंग्वेज एंड टेक्नोलॉजी तैयार किया गया है। ये दोनों पेपर 2-2 क्रेडिट के होंगे। विद्वत परिषद की बैठक में इसे मंजूरी मिल चुकी है। डीयू के दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रो. श्रीप्रकाश सिंह ने बताया कि एईसी- हिंदी भाषा और तकनीक पाठ्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थी को भाषा के अध्ययन में तकनीक की भूमिका से अवगत कराना है। आमतौर पर छात्रों को एक विषय के रूप में सामाजिक विज्ञान और किसी अन्य विषय को लेना पड़ता था, लेकिन कम्प्यूटर के प्रयोग से हिंदी क्षेत्र के विस्तार के बारे में इस पेपर के माध्यम से विद्यार्थी परिचित होंगे। संस्कृत भाषा और टेक्नोलॉजी के तहत शिक्षा और भाषा सीखने में सूचना प्रौद्योगिकी का तेजी से उपयोग हो रहा है। पाठ्यक्रम का उद्देश्य प्रौद्योगिकी के माध्यम से संस्कृत भाषा के कौशल को ■ टाइपिंग से लेकर अन्य टूल संचालन का प्रशिक्षण दिया जाएगा बढ़ाने के लिए उपकरणों और प्रौद्योगिकी से परिचित कराना है। पाठ्यक्रम के तहत इकाई एक में हिन्दी भाषा की संरचना वर्ण, शब्द, वाक्य ( सामान्य परिचय) हिन्दी का व्यावहारिक व्याकरण, संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, क्रिया विशेषण, पदक्रम, अन्विति, विराम चिह्न देवनागरी लिपि, मानक वर्तनी वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दावली को शामिल किया गया है। इकाई दो में भाषा और तकनीक के तहत कंप्यूटर में हिन्दी प्रयोग से संबंधित प्रमुख तकनीकी सुविधाएं जैसे हिंदी टाइपिंग टूल्स की बोर्ड इनस्क्रिप्ट, रेमिंग्टन और फोनेटिक, गूगल इनपुट टूल, माइक्रोसॉफ्ट, इंडिक इनपुट टूल, गूगल वॉइस टाइपिंग, ऑटोमैटिक स्पीच रिकग्निशन शामिल हैं। इसके साथ ही हिंदी ई-शब्दकोश के तहत हिंदी शब्द सिंधु 2.0 - हिंदी शब्दकोश, हिंदवी डिक्शनरी को पाठ्यक्रम में शामिल किया है। मशीनी अनुवाद से संबंधित प्रमुख सॉफ्टवेयर कंठस्थ 2.0, भाषिनी, गूगल ट्रांसलेटर, माइक्रोसॉफ्ट ट्रांसलेटर और प्रोजेक्ट उड़ान की जानकारी भी विद्यार्थी इस पेपर के तहत पढ़ सकेगें।

Friday, May 27, 2022

राजा विक्रमादित्य के दरबार नवरत्न


राजा विक्रमादित्य के दरबार नवरत्न


राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। नवरत्न हैं –

धन्वन्तरि

 नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।

क्षपणक

 इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे। इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे। इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।

अमरसिंह

 ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है।

शंकु

इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है। इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है। किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है। इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया।

वेतालभट्ट

विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है। ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे, किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता। ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।

घटखर्पर

 जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है। मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे। बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया। इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है। इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है।

कालिदास

 ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। वह न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।

वराहमिहिर

भारतीय ज्योतिष -शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें-‘बृहज्जातक‘, सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं। गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।

वररुचि

कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती है।

Monday, October 18, 2021

इतिहास की प्रमुख घटनाएँ एवं उनके वर्ष

इतिहास की प्रमुख घटनाएँ एवं उनके वर्ष 

गौतम बुद्ध का जन्म - 563 ई०पू०

गौतम बुद्ध का महापरिवार्न - 483 ई०पू०

सिकंदर का भारत पर आक्रमण - 326-325 ई०पू०

अशोक द्वारा कलिंग पर विजय - 261 ई०पू०

विक्रम संवत् का आरम्भ - 58 ई०पू०

शक् संवत् का आरम्भ - 78 ई०पू०

हिजरी संवत् का आरम्भ -  622 ई०

फाह्यान की भारत यात्रा - 405-11 ई०

हर्षवर्धन का शासन -  606-647 ई०