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Friday, April 9, 2021

ज्ञान माला भाग 4

ज्ञान माला भाग  4

*चार वाद्य :* तत्, सुषिर, अवनद्व, घन

*पाँच तत्व :* पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु

*पाँच देवता :* गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य

*पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ :* आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा

*पाँच कर्म :* रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि

*पाँच  उंगलियां :* अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा

*पाँच पूजा उपचार :* गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य

*पाँच अमृत :* दूध, दही, घी, शहद, शक्कर

*पाँच प्रेत :* भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस

*पाँच स्वाद :* मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा

*पाँच वायु :* प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान

*पाँच इन्द्रियाँ :* आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन

*पाँच वटवृक्ष :* सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)

ज्ञान माला भाग 3

 

ज्ञान माला भाग 3

*तीन संध्या :* प्रात:, मध्याह्न, सायं

*तीन शक्ति :* इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति

*चार धाम :* बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका

*चार मुनि :* सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार

*चार वर्ण :* ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र

*चार निति :* साम, दाम, दंड, भेद

*चार वेद :* सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर

ज्ञान माला भाग 2


ज्ञान माला भाग 2

*चार समय :* सुबह,दोपहर, शाम, रात

*चार अप्सरा :* उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा

*चार गुरु :* माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु

*चार प्राणी :* जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर

*चार जीव :* अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज

*चार वाणी :* ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्

*चार आश्रम :* ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास

*चार भोज्य :* खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य

Wednesday, March 17, 2021

उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी

 

उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी 


▪️ उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी


▪️ उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी


▪️ उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी


▪️ उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी


▪️ उज्जैन से मल्लिकार्जुन- 999 किमी


▪️ उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी


▪️ उज्जैन से त्रयंबकेश्वर- 555 किमी


▪️ उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी


▪️ उज्जैन से रामेश्वरम्- 1999 किमी


▪️ उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी


वह

Tuesday, March 16, 2021

love

 love

"love is believe 

believe is true

true is also love 

we should kept your love

always...!"

 written by suman sharma'vaishnopriya'

 

धर्मवीर पण्डित लेखराम


धर्मवीर पण्डित लेखराम


  1. हिन्दू धर्म के प्रति अनन्य निष्ठा रखकर धर्म प्रचार में अपना जीवन समर्पण करने वाले धर्मवीर पंडित लेखराम का जन्म अविभाजित भारत के ग्राम सैयदपुर (तहसील चकवाल, जिला झेलम, पंजाब) में मेहता तारासिंह के घर आठ चैत्र, वि0सं0 1915 को हुआ था। बाल्यकाल में उनका अध्ययन उर्दू एवं फारसी में हुआ; क्योंकि उस समय राजकाज एवं शिक्षा की भाषा यही थी। 
  2. 17 वर्ष की अवस्था में वे पुलिस में भर्ती हो गये; पर कुछ समय बाद उनका झुकाव आर्य समाज की ओर हो गया। वे एक माह का अवकाश लेकर ऋषि दयानन्द जी से मिलने अजमेर चले गये। वहाँ उनकी सभी जिज्ञासाएँ शान्त हुईं। लौटकर उन्होंने पेशावर में आर्य समाज की स्थापना की और धर्म-प्रचार में लग गये। धीरे-धीरे वे ‘आर्य मुसाफिर’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
  3. पंडित लेखराम ने ‘धर्मोपदेश’ नामक एक उर्दू मासिक पत्र निकाला। उच्च कोटि की सामग्री के कारण कुछ समय में ही वह प्रसिद्ध हो गया। उन दिनों पंजाब में अहमदिया नामक एक नया मुस्लिम सम्प्रदाय फैल रहा था। इसके संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद स्वयं को पैगम्बर बताते थे। पण्डित लेखराम ने अपने पत्र में इनकी वास्तविकता जनता के सम्मुख रखी। इस बारे में उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं। इससे मुसलमान उनके विरुद्ध हो गये।
  4. महर्षि दयानन्द जी के देहान्त के बाद पंडित लेखराम को लगा कि सरकारी नौकरी और धर्म प्रचार साथ-साथ नहीं चल सकता। अतः उन्होंने नौकरी छोड़ दी। जब पंजाब में आर्य प्रतिनिधि सभा का गठन हुआ, तो वे उसके उपदेशक बन गये। इस नाते उन्हें अनेक स्थानों पर प्रवास करने तथा पूरे पंजाब को अपने शिकंजे में जकड़ रहे इस्लाम को समझने का अवसर मिला।
  5. लेखराम जी एक श्रेष्ठ लेखक थे। आर्य प्रतिनिधि सभा ने ऋषि दयानन्द के जीवन पर एक विस्तृत एवं प्रामाणिक ग्रन्थ तैयार करने की योजना बनायी। यह दायित्व उन्हें ही दिया गया। उन्होंने देश भर में भ्रमण कर अनेक भाषाओं में प्रकाशित सामग्री एकत्रित की। इसके बाद वे लाहौर में बैठकर इस ग्रन्थ को लिखना चाहते थे; पर दुर्भाग्यवश यह कार्य पूरा नहीं हो सका।
  6. पंडित लेखराम की यह विशेषता थी कि जहाँ उनकी आवश्यकता लोग अनुभव करते, वे कठिनाई की चिन्ता किये बिना वहाँ पहुँच जाते थे। एक बार उन्हें पता लगा कि पटियाला जिले के पायल गाँव का एक व्यक्ति हिन्दू धर्म छोड़ रहा है। वे तुरन्त रेल में बैठकर उधर चल दिये; पर जिस गाड़ी में वह बैठे, वह पायल नहीं रुकती थी। इसलिए जैसे ही पायल स्टेशन आया, लेखराम जी गाड़ी से कूद पड़े। उन्हें बहुत चोट आयी। जब उस व्यक्ति ने पंडित लेखराम जी का यह समर्पण देखा, तो उसने धर्मत्याग का विचार ही त्याग दिया।
  7. उनके इन कार्यों से मुसलमान बहुत नाराज हो रहे थे। छह मार्च, 1897 की एक शाम जब वे लाहौर में लेखन से निवृत्त होकर उठे, तो एक मुसलमान ने उन्हें छुरे से बुरी तरह घायल कर दिया। उन्हें तुरन्त अस्पताल पहुँचाया गया; पर उन्हंे बचाया नहीं जा सका। 
  8. मृत्यु से पूर्व उन्होंने कार्यकत्र्ताओं को सन्देश दिया कि आर्य समाज में तहरीर (लेखन) और तकरीर (प्रवचन) का काम बन्द नहीं होना चाहिए। धर्म और सत्य के लिए बलिदान होने वाले पण्डित लेखराम ‘आर्य मुसाफिर’ जैसे महापुरुष मानवता के प्रकाश स्तम्भ हैं।