telegram

Search results

Tuesday, August 18, 2020

लिवर खराब होने के महत्वपूर्ण कारण

 🌹लिवर खराब होने के कारण🌹


🌻1-शराब या अन्य नशीले पदार्थों का अधिक समय तक और अधिक मात्रा में उपयोग यकृत (लीवर) की बीमारी का कारण बनता है।शराब लीवर को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाती है।


🌻2-कुछ अंग्रेजी दवाओं के अधिक मात्रा में सेवन के कारण लीवर को क्षति पहुंच सकती है। जैसे पेरासिटामोल का अधिक उपयोग तथा कैंसर के उपचार में काम आने वाली कुछ दवाओं के कारण यकृत (लीवर) प्रभावित हो सकता है।


🌻3-लीवर कई बार किसी वायरस, आनुवांशिक रोग, पुराना मलेरिया, ज्वर, अधिक मीठे , अधिक तले भुने पदार्थो का सेवन, दूषित,बासी खान पान, कब्ज आदि से लिवर के खराब हो जाता है ।


🌻4-कई बार बुखार ठीक होने के बाद भी लिवर खराब रहता है या कठोर और पहले से बड़ा हो जाता हैं। इस रोग के घातक रूप ले लेने से लिवर सिरोसिस हो सकता है।


🌹लिवर खराब होने पर क्या खाना चाहिए  :


 👉🏻ताजे फल और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन ।

 👉🏻अधिक मात्रा में पानी पिए ।

 👉🏻लीवर के रोगों में पालक और चकुंदर का जूस पीना लाभकारी है ।

👉🏻याद रखें लीवर के रोगों में मरीज का खाना हल्का और आसानी से पचने वाला होना चाहिए ।


🌹लिवर खराब होने पर क्या नहीं खाना चाहिए :


✱ शराब, ,चाय, काफी, जंक फूड आदि से परहेज करें ।

✱ एंटीबायोटिक दवाईयों का अधिक मात्रा में सेवन न करें ।

✱ सफेद डबलरोटी, बर्गर, जंक फूड और मैदा से बने भोजन ना खाएं |

✱ अत्यधिक तले हुए भोजन से परहेज करें ।

✱पास्ता, चाय, मैगी, चौमीन, कॉफी, तंबाकू, मांस खासकर रेड मीट और मिठाइयां न खाएं-पिएं।


🌹लिवर खराब होने पर उपचार :


🌻1. अदरक के 1 ग्राम बारीक चूर्ण को पानी के साथ सुबह-शाम लेने से जिगर की बिमारी में आराम मिलता है।


🌻2.1-1 गिलास छाछ दिन में 2-3 बार पीने से जिगर का रोग ठीक होता है।


🌻3.12 ग्राम देशी अजवायन को 125 ग्राम पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में रात को भिगो दें। सुबह इसी पानी को निथार कर पीने से 7 दिनों तक जिगर में खून की कमी दूर हो जाती है


🌻4.पीपल का 5 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम लेने से जिगर की बिमारी से राहत मिलती है।

हिंदू धर्म में पीपल का महत्व

आज का विषय है हिदु धर्म और पीपल 

पीपल को वृक्षों का राजा कहते है। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए:-
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु,
सखा शंकरमेवच ।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम,
वृक्षराज नमोस्तुते ।।

हिदु धर्म में पीपल के पेड़ का बहुत महत्व माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस वृक्ष में सभी देवी-देवताओं और हमारे पितरों का वास भी माना गया है।

पीपल वस्तुत: भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप ही है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है की वृक्षों में मैं पीपल हूँ।

पुराणो में उल्लेखित है कि
〰〰〰〰〰〰〰〰
मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः।
 अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।। 
अर्थात इसके मूल में भगवान ब्रह्म, मध्य में भगवान श्री विष्णु तथा अग्रभाग में भगवान शिव का वास होता है।

शास्त्रों के अनुसार पीपल की विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करने से समस्त देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं।
कहते है पीपल से बड़ा मित्र कोई भी नहीं है, जब आपके सभी रास्ते बंद हो जाएँ, आप चारो ओर से अपने को परेशानियों से घिरा हुआ समझे, आपकी परछांई भी आपका साथ ना दे, हर काम बिगड़ रहे हो तो 
आप पीपल के शरण में चले जाएँ, उनकी पूजा अर्चना करे , उनसे मदद की याचना करें  निसंदेह कुछ ही समय में आपके घोर से घोर कष्ट दूर जो जायेंगे।

धर्म शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति को जीवन में पीपल का पेड़ अवश्य ही लगाना चाहिए । पीपल का पौधा लगाने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार संकट नहीं रहता है। पीपल का पौधा लगाने के बाद उसे रविवार को छोड़कर नियमित रूप से जल भी अवश्य ही अर्पित करना चाहिए। जैसे-जैसे यह वृक्ष बढ़ेगा आपके घर में सुख-समृद्धि भी बढ़ती जाएगी।  पीपल का पेड़ लगाने के बाद बड़े होने तक इसका पूरा ध्यान भी अवश्य ही रखना चाहिए, लेकिन ध्यान रहे कि पीपल को आप अपने घर से दूर लगाएं, घर पर पीपल की छाया भी नहीं पड़नी चाहिए।

मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति पीपल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित करता है तो उसके जीवन से बड़ी से बड़ी परेशानियां भी दूर हो जाती है। पीपल के नीचे शिवलिंग स्थापित करके उसकी नित्य पूजा भी अवश्य ही करनी चाहिए। इस उपाय से जातक को सभी भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है।

सावन मास की अमवस्या की समाप्ति और सावन के सभी शनिवार को पीपल की विधि पूर्वक पूजा करके इसके नीचे भगवान हनुमान जी की पूजा अर्चना / आराधना करने से घोर से घोर संकट भी दूर हो जाते है।

यदि पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर रविवार को छोड़कर नित्य हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो यह चमत्कारी फल प्रदान करने वाला उपाय है।

पीपल के नीचे बैठकर पीपल के 11 पत्ते तोड़ें और उन पर चन्दन से भगवान श्रीराम का नाम लिखें। फिर इन पत्तों की माला बनाकर उसे प्रभु हनुमानजी को अर्पित करें, सारे संकटो से रक्षा होगी।

पीपल के चमत्कारी उपाय
〰〰〰〰〰〰〰〰
शास्त्रानुसार प्रत्येक पूर्णिमा पर प्रातः 10 बजे पीपल वृक्ष पर मां लक्ष्मी का फेरा लगता है। इसलिए जो व्यक्ति आर्थिक रूप से मजबूत होना चाहते है वो इस समय पीपल के वृक्ष पर फल, फूल, मिष्ठान चढ़ाते हुए धूप अगरबती जलाकर मां लक्ष्मी की उपासना करें, और माता लक्ष्मी के किसी भी मंत्र की एक माला भी जपे । इससे जातक को अपने किये गए कार्यों के सर्वश्रेष्ठ फल मिलते है और वह धीरे धीरे आर्थिक रूप से सक्षम हो जाता है ।

पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी और उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा। 

व्यापार में वृद्धि हेतु प्रत्येक शनिवार को एक पीपल का पत्ता लेकर उस पर चन्दन से स्वस्तिक बना कर उसे अपने व्यापारिक स्थल की अपनी गद्दी / बैठने के स्थान के नीचे रखे । इसे हर शनिवार को बदल कर अलग रखते रहे । ऐसा 7 शनिवार तक लगातार करें फिर 8वें शनिवार को इन सभी पत्तों को किसी सुनसान जगह पर डाल दें और मन ही मन अपनी आर्थिक समृद्धि के लिए प्रार्थना करते रहे, शीघ्र पीपल की कृपा से आपके व्यापार में बरकत होनी शुरू हो जाएगी ।

जो मनुष्य पीपल के वृक्ष को देखकर प्रणाम करता है, उसकी आयु बढ़ती है 
जो इसके नीचे बैठकर धर्म-कर्म करता है, उसका कार्य पूर्ण हो जाता है।

पीपल के वृक्ष को काटना 
〰〰〰〰〰〰〰
जो मूर्ख मनुष्य पीपल के वृक्ष को काटता है, उसे इससे होने वाले पाप से छूटने का कोई उपाय नहीं है। (पद्म पुराण, खंड 7 अ 12)

हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है। अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है
यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।

शनि दोष में पीपल 
〰〰〰〰〰〰
शनि की साढ़ेसाती और ढय्या के बुरे प्रभावों को दूर कर,शुभ प्रभावों को प्राप्त करने के लिए हर जातक को प्रति शनिवार को पीपल की पूजा करना श्रेष्ठ उपाय है। 

यदि रोज (रविवार को छोड़कर) पीपल पर पश्चिममुखी होकर जल चढ़ाया जाए तो शनि दोष की शांति होती है l

शनिवार की सुबह गुड़, मिश्रित जल चढ़ाकर, धूप अगरबत्ती जलाकर उसकी सात परिक्रमा करनी चाहिए, एवं संध्या के समय पीपल के वृक्ष के नीचे कड़वे तेल का दीपक भी अवश्य ही जलाना चाहिए। इस नियम का पालन करने से पीपल की अदृश्य शक्तियां उस जातक की सदैव मदद करती है।

ब्रह्म पुराण' के 118 वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं- 'मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा  उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।'

शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय।' का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है।

हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है ।

 ग्रहों के दोषों में पीपल 
〰〰〰〰〰〰〰
ज्योतिष शास्त्र में पीपल से जुड़े हुए कई आसान किन्तु अचूक उपाय बताए गए हैं, जो हमारे समस्त ग्रहों के दोषों को दूर करते हैं। जो किसी भी राशि के लोग आसानी से कर सकते हैं। इन उपायों को करने के लिए हमको अपनी किसी ज्योतिष से कुंडली का अध्ययन करवाने की भी आवश्यकता नहीं है।

पीपल का पेड़ रोपने और उसकी सेवा करने से पितृ दोष में कमी होती है । शास्त्रों के अनुसार पीपल के पेड़ की सेवा मात्र से ही न केवल पितृ दोष वरन जीवन के सभी परेशानियाँ स्वत: कम होती जाती है

पीपल में प्रतिदिन (रविवार को छोड़कर) जल अर्पित करने से कुंडली के समस्त अशुभ ग्रह योगों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। पीपल की परिक्रमा से कालसर्प जैसे ग्रह योग के बुरे प्रभावों से भी छुटकारा मिल जाता है। (पद्म पुराण)

असाध्य रोगो में पीपल
〰〰〰〰〰〰〰
पीपल की सेवा से असाध्य से असाध्य रोगो में भी चमत्कारी लाभ होता देखा गया है ।
 
यदि कोई व्यक्ति किसी भी रोग से ग्रसित है
 वह नित्य पीपल की सेवा करके अपने बाएं हाथ से उसकी जड़ छूकर उनसे अपने रोगो को दूर करने की प्रार्थना करें तो जातक के रोग शीघ्र ही दूर होते है। उस पर दवाइयों का जल्दी / तेज असर होता है । 

यदि किसी बीमार व्यक्ति का रोग ठीक ना हो रहा हो तो उसके तकिये के नीचे पीपल की जड़ रखने से बीमारी जल्दी ठीक होती है ।

निसंतान दंपती संतान प्राप्ति हेतु पीपल के एक पत्ते को प्रतिदिन सुबह लगभग एक घंटे पानी में रखे, बाद में उस पत्ते को पानी से निकालकर किसी पेड़ के नीचे रख दें और पति पत्नी उस जल का सेवन करें तो शीघ्र संतान प्राप्त होती है । ऐसा लगभग 2-3 माह तक लगातार करना चाहिए ।

Saturday, August 15, 2020

कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति; एमफिल बंद

 *कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति* (New Education Policy 2020*) को हरी झंडी दे दी है. 

34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है. नई शिक्षा नीति की उल्लेखनीय बातें सरल तरीके की इस प्रकार हैं: 


----*5 Years Fundamental*----

1.  Nursery    @4 Years 

2.  Jr KG        @5 Years

3.  Sr KG        @6 Years

4.  Std 1st     @7 Years 

5.  Std 2nd    @8 Years


---- *3 Years Preparatory*----

6.  Std 3rd     @9 Years 

7.  Std 4th     @10 Years 

8.  Std 5th     @11 Years 


----- *3 Years Middle*----

9.  Std 6th     @12 Years 

10.Std 7th     @13 Years 

11. Std 8th    @14 Years


---- *4 Years Secondary*----

12. Std 9th    @15 Years 

13. Std SSC   @16 Years 

14. Std FYJC  @17Years 

15. STD SYJC @18 Years 


खास बातें :


----केवल 12वीं क्‍लास में होगा बोर्ड। 

कॉलेज की डिग्री 4 साल की। 10वीं बोर्ड खत्‍म। 

MPhil भी होगा बंद।

(जेएनयू जैसे संस्थानों में 45 से 50 साल के स्टूडेंट्स कंई बरसों तक वहां पडे रहकर MPhil करते हैं, यह सभी ऐयाशी वामपंथी विचारधारा वाले राष्ट्रद्रोही को संस्थान से अब हटाया जा सकेगा ..)

---- अब 5वीं तक के छात्रों को मातृ भाषा, स्थानीय भाषा और राष्ट्र भाषा में ही पढ़ाया जाएगा. बाकी विषय चाहे वो अंग्रेजी ही क्यों न हो, एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाएगा।

 

----अब *सिर्फ 12वींं में बोर्ड की परीक्षा देनी होगी*. जबकि इससे पहले 10वी बोर्ड की परीक्षा देना अनिवार्य होता था, जो अब नहीं होगा।


----9वींं से 12वींं क्लास तक सेमेस्टर में परीक्षा होगी. *स्कूली शिक्षा को 5+3+3+4 फॉर्मूले के तहत पढ़ाया* जाएगा (ऊपर का टेबल देखें)।


----कॉलेज की डिग्री 3 और 4 साल की होगी. यानि, कि ग्रेजुएशन के *पहले साल पर सर्टिफिकेट, दूसरे साल पर डिप्‍लोमा, तीसरे साल में डिग्री मिलेगी*।


----3 साल की डिग्री उन छात्रों के लिए है जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं लेना है. वहीं हायर एजुकेशन करने वाले छात्रों *को 4 साल की डिग्री करनी होगी. 4 साल की डिग्री करने वाले स्‍टूडेंट्स *एक साल में MA कर सकेंगे*।


---अब स्‍टूडेंट्स को MPhil नहीं करना होगा. *बल्कि MA के छात्र अब सीधे PHD* कर सकेंगे.


----स्‍टूडेंट्स बीच में कर सकेंगे अन्य दूसरे कोर्स. *हायर एजुकेशन में 2035 तक ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो 50 फीसदी हो जाएगा*. वहीं नई शिक्षा नीति के तहत कोई छात्र एक कोर्स के बीच में अगर कोई दूसरा कोर्स करना चाहे तो पहले कोर्स से सीमित समय के लिए ब्रेक लेकर वो दूसरा कोर्स कर सकता है। 


----हायर एजुकेशन में भी कई सुधार किए गए हैं. सुधारों में ग्रेडेड अकेडमिक, ऐडमिनिस्ट्रेटिव और *फाइनेंशियल ऑटोनॉमी आदि शामिल हैं. इसके अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में *ई-कोर्स शुरू किए जाएंगे. वर्चुअल लैब्स* विकसित किए जाएंगे. एक नैशनल एजुकेशनल साइंटफिक फोरम (NETF) शुरू किया जाएगा. बता दें, कि देश में 45 हजार कॉलेज हैं.


----सरकारी, निजी, डीम्‍ड सभी संस्‍थानों के लिए होंगे समान नियम।

इस नियम के मुताबिक नए शैक्षणिक सत्र शुरू किया जा सकता है। सभी विद्यार्थियों और पालक ध्यान से इस संदेश पढे.

Friday, August 14, 2020

भोजन के प्रकार

  1. भोजन के प्रकार

भीष्म पितामह ने गीता में अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन करना बताया--

 

👉🏿 पहला भोजन

 जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन नाले में पड़े कीचड़ के समान होता है।


👉🏿दूसरा भोजन

 जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई ,पाव लग गया वह भोजन भिष्टा के समान होता है।


तीसरे भोजन 

जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह भोजन दरिद्रता के समान होता है।


👉🏿 चौथा भोजन 

 पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है और सुनो अर्जुन अगर पत्नी ,पति के भोजन करने के बाद उसी थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है।चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है।


विशेष सूचना --

सुन अर्जुन-  बेटी अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में ,, उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती ,क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है। इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन करें। क्योंकि वह अपने पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती हैं।


Tuesday, August 11, 2020

हिन्दी भाषा व्याकरण

हिन्दी भाषा व्याकरण💐


हिन्दी शब्द–कोश में शब्दों का क्रम –

हिन्दी शब्द–कोश में शब्दों का क्रम विभिन्न

वर्णोँ के निम्न क्रम के अनुसार है–

अं, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, क, क्ष, ख, ग, घ, च, छ, ज, ज्ञ, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, त्र, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह ।

इस प्रकार शब्द–कोश में सर्वप्रथम ‘अं’ या ‘अँ’ से प्रारंभ होने वाले शब्द होते हैं और अन्त में ‘ह’ से प्रारंभ होने वाले शब्द। प्रत्येक शब्द से प्रारंभ होने वाले शब्द भी हजारों की संख्या में होते हैं,

अतः शब्द–कोश में उनका क्रम–विन्यास

विभिन्न स्वरों की मात्राओँ के अग्र क्रम में

होता है–

ं ँ ा ि ी ु ू ृ े ै ो ौ ।

• उदाहरण –

1. आधा वर्ण उस वर्ण की ‘औ’ की मात्रा के

बाद आता है। जैसे– कटौती के बाद कट्टर, करौ के बाद कर्क, कसौ के बाद कस्त, कौस्तु के बाद क्य, क्योँ के बाद क्रं... क्र... क्ल... क्व आदि।

2. ‘ृ ’ की मात्रा ‘ऊ’ की मात्रा वाले वर्ण के

बाद आती है। जैसे– कूक, कूल के बाद कृत।


3. ‘क्ष’ वर्ण आधे ‘क्’ के बाद आता है। जैसे–

क्विँटल के बाद क्षण।


4. ‘ज्ञ’ अक्षर ‘जौ’ के अंतिम शब्द के बाद आता

है। जैसे– जौहरी के बाद ज्ञात।


5. ‘त्र’ अक्षर ‘त्यौ’ के बाद आयेगा। जैसे–

त्यौहार के बाद त्रय।


6. ‘श्र’ अक्षर ‘श्यो’ के बाद आयेगा क्योँकि

श्र=श्*र है तथा ‘र’ शब्द–कोश मेँ ‘य’ के बाद

आता है।


7. ‘द्य’ अक्षर ‘दौ’ के बाद आता है। जैसे–

दौहित्री के बाद द्युति।


8. अक्षर ‘रौ’ के बाद आता है। जैसे– सरौता के

बाद सर्कस एवं करौना के बाद कर्क।

इस

9. अक्षर किसी भी व्यंजन के ‘य’ के साथ संयुक्त अक्षर के अंतिम शब्द के बाद आता है। जैसे–

प्योसार के बाद प्रकट, ग्यारह के बाद ग्रंथ, द्यौ

के बाद द्रव एवं ब्यौरा के बाद ब्रश।


इस प्रकार प्रत्येक वर्ण के सर्वप्रथम अनुस्वार (ं ) या चन्द्रबिन्दु (ँ ) वाले शब्द आते हैँ फिर उनका क्रम क्रमशः अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा के अनुसार होता है। ‘औ’ की मात्रा के बाद आधे अक्षर से प्रारंभ होने वाले शब्द दिये होते हैँ। 


उदाहरणार्थ– ‘क’ से प्रारंभ होने वाले शब्दोँ का क्रम निम्न प्रकार रहेगा–


कं, क, कां, किं, कि, कीं, कुं, कु, कूं, कू, कृं, कें, के, कैं, कै, कों, को, कौं, कौ, क् (आधा क) – क्या, क्रंद, क्रम आदि।


प्रत्येक शब्द में प्रथम अक्षर के बाद आने वाले

द्वितीय, तृतीय आदि अक्षरों का क्रम भी

उपर्युक्त प्रकार से ही होगा।

▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬

Monday, August 10, 2020

संगीत सम्राट पं. विष्णु नारायण भातखण्डे

 पं. विष्णु नारायण भातखण्डे

संगीत सम्राट पं. विष्णु नारायण भातखण्डे 10 अगस्त/जन्म-दिवस

आज जिस सहजता से हम शास्त्रीय संगीत सीख सकते हैं, उसे विकसित करने में पंडित विष्णु नारायण भातखंडे का अप्रतिम योगदान है। उनका जन्म 10 अगस्त, 1860 (जन्माष्टमी) को मुंबई में हुआ था। उनकी शिक्षा पहले मुंबई और फिर पुणे में हुई। वे व्यवसाय से वकील थे तथा मुंबई में सॉलिसीटर के रूप में उनकी पहचान थी। संगीत में रुचि होने के कारण छात्र जीवन में ही उन्होंने श्री वल्लभदास से सितार की शिक्षा ली। इसके बाद कंठ संगीत की शिक्षा श्री बेलबागकर, मियां अली हुसैन खान तथा विलायत हुसैन से प्राप्त की। 


पत्नी तथा बेटी की अकाल मृत्यु से वे जीवन के प्रति अनासक्त हो गये। उसके बाद अपना पूरा जीवन उन्होंने संगीत की साधना में ही समर्पित कर दिया। उन दिनों संगीत की पुस्तकें प्रचलित नहीं थीं। गुरु-शिष्य परम्परा के आधार पर ही लोग संगीत सीखते थे; पर पंडित जी इसे सर्वसुलभ बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि संगीत का कोई पाठ्यक्रम हो तथा इसके शास्त्रीय पक्ष के बारे में भी विद्यार्थी जानें। 


आज छात्रों को पुराने प्रसिद्ध गायकों की जो स्वरलिपियां उपलब्ध हैं, उनका बहुत बड़ा श्रेय पंडित भातखंडे को है। संगीत के एक अन्य महारथी पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर भी इनके समकालीन थे। ये दोनों ‘द्विविष्णु’ के नाम से विख्यात थे। जहां पंडित पलुस्कर का योगदान संगीत के क्रियात्मक पक्ष को उजागर करने में रहा, वहां पंडित भातखंडे क्रियात्मक और सैद्धांतिक दोनों पक्ष में सिद्धहस्त थे। 


देश की भावी पीढ़ी को संगीत सीखना सुलभ हो सके, इसके लिए पंडित जी ने हिन्दुस्तानी संगीत तथा कर्नाटक संगीत पद्धति का गहन अध्ययन कर ‘स्वर मालिका’ नामक पुस्तक लिखी। रागों की पहचान सुलभता से हो सके, इसके लिए ‘थाट’ को आधार माना। इसी प्रकार कर्नाटक संगीत शैली के आधार पर ‘लक्षण गीतों’ का गायन प्रारम्भ किया।


पंडित जी ने अनेक संगीत विद्यालय प्रारम्भ किये। वे चाहते थे कि संगीत की शिक्षा को एक सुव्यवस्थित स्वरूप मिले। उनकी प्रतिभा को पहचान कर बड़ौदा नरेश ने 1916 में अपनी रियासत में संगीत विद्यालय स्थापित किया। इसके बाद ग्वालियर महाराजा ने भी इसकी अनुमति दी, जो आज ‘माधव संगीत महाविद्यालय’ के नाम से विख्यात है। 1926 में उन्होंने लखनऊ में एक विद्यालय खोला, जिसका नाम अब ‘भातखंडे संगीत विद्यालय’ है। पंडित जी द्वारा बनाये गये पाठ्यक्रम को पूरे भारत में आज भी मान्यता प्राप्त है।


संगीत से सामान्य जनता को जोड़ने के लिए उन्होंने ‘अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन’ प्रारम्भ किये। इसमें कोई भी अपनी कला का प्रदर्शन कर सकता था। इससे कई पीढ़ी के संगीतज्ञों को एक साथ मंच पर आने का अवसर मिला। 1933 में उनके पांव की हड्डी टूट गयी। इसके बाद उन्हें पक्षाघात भी हो गया। तीन वर्ष तक वे बीमारी से संघर्ष करते रहे; पर अंततः सृष्टि के अटल विधान की जीत हुई और पंडित जी का 19 सितम्बर 1936 (गणेश चतुर्थी) को देहांत हो गया। उनकी स्मृति में 1961 में उनके जन्म दिवस (जन्माष्टमी) पर भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी किया।

Saturday, August 8, 2020

रानी लक्ष्मीबाई एक नज़र

 


रानी लक्ष्मीबाई एक नज़र में

जन्म 19 नवम्बर 1828 – मृत्यु: 18 जून 1858) रानी लक्ष्मीबाई का एक महान शक्ति थी।

सांईं  का जन्म 28 सितंबर 1835 - मृत्यु 28 सितंबर 1918) सात साल छोटे साई ने रानी लक्ष्मीबाई जी से कुछ भी प्रेरणा नहीं ली।  भारत स्वाधीनता आंदोलन में इनका योगदान कुछ नहीं, भगवान श्री राम जी ने अपने देश धरम मानवता को राक्षसों से मुक्त कराया।

इस साई ने क्या किया केवल हिन्दुओ के मंदिरो में कव्जा किया।