अनुवाद एक भाषा की बात को दूसरी भाषा में व्यक्त करने का नाम है। जिसकी उत्पत्ति अनु+वाद के संयोग से हुई है। जिसका अर्थ है
जब पर्याय की बात प्रबल हुई तो अन्य भाषाओं में अनुवाद की प्रक्रिया भी तीव्र हुई। फलतः विद्वानों ने अनेक भाषाओं के अनुवाद के दौरान होने वाली कठिनाईयों और सुलभता को आकंते हुए इसके लिए कुछ सिद्धांत दिए हैं। जिन पर आगे चलकर विभिन्न आधारों पर अनुवाद सिद्धांतों को प्रतिपादित किया गया। उन्हीं सिद्धांतों की चर्चा नीचे की जाएगी।
अनुवाद संबंधी सिद्धांतों पर स्वतंत्र ग्रंथों का लेखन वस्तुतः बीसवीं शताब्दी से आरंभ हुआ है। इसी शताब्दी के दौरान साहित्यिक और भाषा-वैज्ञानिक पत्रिकाओं में अनुवाद पर लेखों का प्रकाशन आरंभ हुआ और अनुवाद संबंधी पत्रिकाएँ आरंभ हुई। विभिन्न कालों में पश्चिम में अनुवाद को तरह-तरह से परिभाषित करने का प्रयास किया गया है। कुछ परिभाषाएँ हैं—
जे. सी. केटफोर्ट के अनुसार— “अनुवाद स्रोत भाषा की पाठ-सामग्री को लक्ष्य भाषा के समानार्थी पाठ में प्रतिस्थापित करने की प्रक्रिया है।”
सेंट जेरोम के अनुसार – “अनुवाद में भाव की जगह भाव होना चाहिए न कि शब्द की जगह शब्द।”
Good knowledge
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