भारतेन्दु हरिश्चंद के अनूदित नाटक
रत्नावली (1868),
धनंजय विजय(1873),
पाखण्ड विडंबन(1872),
मुद्राराक्षस (1875),
कर्पूरमंजरी (1876),
दुर्लभ बंधु (1880),
विद्यासुन्दर आदि अनूदित नाटक हैं जो संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेजी से अनूदित हैं। विद्यासुन्दर रूपान्तरित नाटक है।
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