भारतेंदु हरिश्चंद्र की गद्य शैली
भारतेंदु ने हिंदी की गद्य शैली का रूप प्रतिष्ठित किया है। हिंदी में संस्कृत और अरबी-फारसी शब्दों के साथ ही उसकी जाति विशेष को समाप्त कर देता है। भारतेंदु हिंदी की इस प्रवृत्ति को पहचानते थे। वे जनता की समझ को ध्यान में रखकर सहज, सरल, स्वभाविक और व्यवहारिक गद्य साहित्य में प्रयोग की। उनकी गद्य शैली के मुख्यत: पांच रूप हैं-
बोलचाल की व्यवहारिक शैली
इस शैली के लिए बाबू बालमुकुंद गुप्त ने लिखा है कि तेज और बेधड़क लिखते थे। भारतेंदु हरिश्चंंद्र ने नाटकों तथा निबंधों में अधिकांश इसी शैली का प्रयोग किया है।
इस शैली के लिए बाबू बालमुकुंद गुप्त ने लिखा है कि तेज और बेधड़क लिखते थे। भारतेंदु हरिश्चंंद्र ने नाटकों तथा निबंधों में अधिकांश इसी शैली का प्रयोग किया है।
संस्कृत निष्ठ तत्सम शैली
इसशैली का प्रयोग पुरातत्व, धर्म, अध्यात्म संबंधित निबंध में किया करते थे ताकि इस शैली के माध्यम से प्राचीन विचारों को उजागर कर सकें।
इसशैली का प्रयोग पुरातत्व, धर्म, अध्यात्म संबंधित निबंध में किया करते थे ताकि इस शैली के माध्यम से प्राचीन विचारों को उजागर कर सकें।
अरबी फारसी की ओर झुकी उर्दू शैली
इस शैली का प्रयोग बहुत कम हुआ है। अधिकतर निबंधों में अध्य -प्रांतीय शैली अपनाई गई है। ऐसा लगता है कि इसका प्रयोग भारतेंदु ने अपनी भाषा ज्ञान का नमूना प्रस्तुत करने के लिए किया था।
इस शैली का प्रयोग बहुत कम हुआ है। अधिकतर निबंधों में अध्य -प्रांतीय शैली अपनाई गई है। ऐसा लगता है कि इसका प्रयोग भारतेंदु ने अपनी भाषा ज्ञान का नमूना प्रस्तुत करने के लिए किया था।
हास्य-व्यंग्य शैली
भारतेंदु ने व्यंग्य और हास्य की दृष्टि के लिए इस शैली के अनेक प्रयोग किए हैं। कहीं उन्होंने अंग्रेजी शब्दों में संस्कृत की विभक्तियां जोड़कर विकृति और विरोध की एकत्र स्थिति को उत्पन्न किया है तो कहीं संस्कृत के शब्दों में अंग्रेजी का प्रयोग करके। उदाहरणतः रिसेप्शन, एक्शन से टिकट च में, मद्यं च में
भारतेंदु ने व्यंग्य और हास्य की दृष्टि के लिए इस शैली के अनेक प्रयोग किए हैं। कहीं उन्होंने अंग्रेजी शब्दों में संस्कृत की विभक्तियां जोड़कर विकृति और विरोध की एकत्र स्थिति को उत्पन्न किया है तो कहीं संस्कृत के शब्दों में अंग्रेजी का प्रयोग करके। उदाहरणतः रिसेप्शन, एक्शन से टिकट च में, मद्यं च में
आदि तो कहीं अनुप्रास की छटा दिखाई देती है। जैसे शामत का मारा शाम तक पानी नहीं मांगता।
काव्य में कलात्मकता
गद्य लिखते समय भारतेंदु का कवि जाग उठता था। प्रकृति वर्णन करते समय या भाव चित्रण करते हुए वह कलात्मकता के लिए रमणीय, अलंकारिक शैली का प्रयोग करते थे। सत्य हरिशचंद्र में सूर्यास्त का वर्णन इसी शैली में किया गया है जो सूर्य उदय होते ही पद्मिनी बल्लभ और अलौकिक वैदिक दोनों कर्मों का प्रवर्तक था तो 'दोपहर तक अपना प्रचंड श्मशान बढ़ाता गया जो गगनांगन का दीपक और कालसर्प का शिखा मणि था। वह इस समय पर कटे विद की भांति अपना सब तेज गवा कर देखो समुद्र में गिरा चाहता है।'
निष्कर्षत: हिंदी साहित्य साहित्य को भारतेंदु ने यह पांच महत्वपूर्ण गद्य शैली देकर समृद्ध किया है भारतेंदु ने हिंदी साहित्य और काव्य को पहली बार रीतिकालीन वातावरण से बाहर कर उसे लोग सामान्य की भाव भूमि से जोड़ा। अर्थात दरबार से कविता को बाहर निकाल आमजन तक पहुंचाया है। उन्होंने अपने नाटक नामक निबंध के माध्यम से हिंदी के नाटकों का स्वरूप प्रकट किया है।
गद्य लिखते समय भारतेंदु का कवि जाग उठता था। प्रकृति वर्णन करते समय या भाव चित्रण करते हुए वह कलात्मकता के लिए रमणीय, अलंकारिक शैली का प्रयोग करते थे। सत्य हरिशचंद्र में सूर्यास्त का वर्णन इसी शैली में किया गया है जो सूर्य उदय होते ही पद्मिनी बल्लभ और अलौकिक वैदिक दोनों कर्मों का प्रवर्तक था तो 'दोपहर तक अपना प्रचंड श्मशान बढ़ाता गया जो गगनांगन का दीपक और कालसर्प का शिखा मणि था। वह इस समय पर कटे विद की भांति अपना सब तेज गवा कर देखो समुद्र में गिरा चाहता है।'
निष्कर्षत: हिंदी साहित्य साहित्य को भारतेंदु ने यह पांच महत्वपूर्ण गद्य शैली देकर समृद्ध किया है भारतेंदु ने हिंदी साहित्य और काव्य को पहली बार रीतिकालीन वातावरण से बाहर कर उसे लोग सामान्य की भाव भूमि से जोड़ा। अर्थात दरबार से कविता को बाहर निकाल आमजन तक पहुंचाया है। उन्होंने अपने नाटक नामक निबंध के माध्यम से हिंदी के नाटकों का स्वरूप प्रकट किया है।
Excellent article
ReplyDeleteSunder Sunder Sunder Bhai,
ReplyDeleteUttam uttam uttam Bhai😉😉😉