शोध पत्र लेखन के विभिन्न आयाम
शोध का आरंभ किसी विचार से होता है। इस विचार की उत्पत्ति प्रत्यक्ष रूप से किसी घटना को देखने या अंतर्गत प्रतिक्रिया से होता है। शोध संबंधी प्रारंभिक विचार में क्या, क्यों, कैसे किया और कहां का समाधान होना आवश्यक है।
पूरी समस्या को शोध पत्र में निश्चित आकार देने के लिए उपलब्ध साहित्य और सिद्धांतों का उचित अध्ययन एवं मनन करना चाहिए। जिस विषय पर हम शोध कर रहे हैं, क्या उस विषय पर पहले भी शोध हो चुके हैं। यदि हां तो उसका निष्कर्ष क्या है। उसमें किन पद्धतियों का प्रयोग किया गया? शोधार्थी के लिए शोध विषय समस्या के लिए प्रशिक्षण कर सकते हैं। शोधार्थी साक्ष्यों, दस्तावेजों, पुरातत्त्व सामग्री आदि के अध्ययन के सहयोग से शोध पत्र को लिखने में सहायता मिलती है।
किसी भी विषय पर गढ़ी हुई तथा शोध प्रविधि के अध्ययन से ऐसी सामग्री को निर्धारित प्रारूप में प्रस्तुत करता है। शोध पत्र लेखन में सहायक सिद्ध होता है। शोध पत्र लिखने में लेखक द्वारा चुने गए विषय पर उसके पर्याप्त अध्ययन और अनुसंधान के द्वारा अध्ययन सामग्री को प्रस्तुत किया जाता है।
जब हम शोध पत्र के शीर्षक का चयन करते हैं तो इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि शीर्षक विषय वस्तु से संबंधित हो।
शोध पत्र लेखन में जो स्वरूप प्रचलित है। उसके अनुरूप शोध पत्र लिखना थोड़ा मुश्किल है। किंतु अपनी विषय-वस्तु को मात्र उस प्रारूप में प्रस्तुत न करके पूर्ण तारतम्यता के साथ प्रस्तुत करना ही एक अच्छे शोध पत्र का गुण है।
शोध पत्र की भूमिका ऐसीहोऐसी चाहिए कि किसी भी विषय से संबंधित शोध विशेषज्ञ उस शोध पत्र को पढ़ने के लिए जिज्ञासित हो उठे।
शोध पत्र का उद्देश्य ऐसा होना चाहिए कि पाठकों का ध्यान सहज ही आकर्षित कर सकें। मूल शोध पत्र को अलग-अलग अनुच्छेदों में लिखना चाहिए। शोध पत्र में सांख्यिकी डाटा संबंधित महत्वपूर्ण ग्राफ चित्र ,प्रमाण इत्यादि के द्वारा भी मुख्य विषय का प्रतिपादन किया जा सकता है।
शोध पत्र का निष्कर्ष उसका मूल्य है। क्योंकि पाठक शीर्षक पढ़ कर सीधे निष्कर्ष पर पहुंचता है। इसलिए निष्कर्ष इतना प्रभावी होना चाहिए कि शोध लेख को पढ़ने के लिए उत्साहित हो उठे।
Very nice information
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