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Friday, July 31, 2020

नई शिक्षा नीति 2020 हुए चौका देने वाले बदलाव

नई शिक्षा नीति 2020-- संक्षिप्त विवरण

नई दिल्‍ली 
कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति *(New Education Policy 2020)* को हरी झंडी दे दी है, *34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव* किया गया है। HRD मंत्री रमेश पोखरियाल *निशंक* ने कहा कि ये नीति एक महत्वपूर्ण रास्ता प्रशस्‍त करेगी, ये नए भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगी। इस नीति पर देश के कोने कोने से राय ली गई है और इसमें सभी वर्गों के लोगों की राय को शामिल किया गया है। देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि इतने बडे़ स्तर पर सबकी राय ली गई है।

नई शिक्षा नीति के तहत अब 5 वीं तक के छात्रों को मातृ भाषा, स्थानीय भाषा और राष्ट्र भाषा में ही पढ़ाया जाएगा।

― बाकी विषय चाहे वो अंग्रेजी ही क्यों न हो, एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाएगा।

― 9 वींं से 12 वींं क्लास तक सेमेस्टर में परीक्षा होगी, स्कूली शिक्षा को 5+3+3+4 फॉर्मूले के तहत पढ़ाया जाएगा।

― वहीं कॉलेज की डिग्री 3 और 4 साल की होगी, यानि कि ग्रेजुएशन के पहले साल पर सर्टिफिकेट, दूसरे साल पर डिप्‍लोमा, तीसरे साल में डिग्री मिलेगी।

― 3 साल की डिग्री उन छात्रों के लिए है जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं लेना है, वहीं हायर एजुकेशन करने वाले छात्रों को 4 साल की डिग्री करनी होगी, 4 साल की डिग्री करने वाले स्‍टूडेंट्स एक साल में MA कर सकेंगे।

― अब स्‍टूडेंट्स को न M.Philहीं करना होगा, बल्कि MA के छात्र अब सीधे Ph.D कर सकेंगे।

पहली बार इतने बड़े पैमाने पर जुटाई गई थी राय …।इस शिक्षा नीति के लिए कितने बड़े स्तर पर राय ली गई थी। इसका अंदाजा इन आंकड़ों से सहज ही लगाया जा सकता है। इसके लिए 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6,600 ब्लॉक्स, 676 जिलों से सलाह ली गई थी। 

हायर एजुकेशन में 2035 तक ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो 50 फीसदी हो जाएगा। वहीं नई शिक्षा नीति के तहत कोई छात्र एक कोर्स के बीच में अगर कोई दूसरा कोर्स करना चाहे तो पहले कोर्स से सीमित समय के लिए ब्रेक लेकर वो दूसरा कोर्स कर सकता है।

हायर एजुकेशन में भी कई सुधार किए गए हैं।सु सुधारों में ग्रेडेड अकेडमिक, ऐडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल ऑटोनॉमी आदि शामिल हैं। इसके अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कोर्स शुरू किए जाएंगे। वर्चुअल लैब्स विकसित किए जाएंगे, एक नैशनल एजुकेशनल साइंटफिक फोरम (NETF) शुरू किया जाएगा।  देश में अभी 45 हजार कॉलेज हैं।


सरकारी, *निजी*, *डीम्‍ड सभी संस्‍थानों के लिए होंगे समान नियम 

हायर एजुकेशन सेक्रटरी अमित खरे ने बताया, नए सुधारों में टेक्नॉलॉजी और ऑनलाइन एजुकेशन पर जोर दिया गया है। अभी हमारे यहां डीम्ड यूनविर्सिटी*, *सेंट्रल यूनिवर्सिटीज और स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस के लिए अलग-अलग नियम हैं। नई एजुकेशन पॉलिसी के तहत सभी के लिए नियम समान होंगे।


*कक्षा10वीं में नहीं होंगे बोर्ड एग्‍जाम, पढ़ें नई शिक्षा नीति की 10 बड़ी बातें

*नई दिल्ली* : मोदी कैबिनेट ने आज नई शिक्षा नीति के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। पीएम मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज ये फैसला किया, शिक्षा नीति में ये बदलाव 34 साल बाद हुआ।नई शिक्षा नीति से जुड़ी दस बड़ी बातें।

― 5वीं तक कम से कम और आठवीं और उससे आगे भी मुमकिन हुआ, तो स्थानीय भाषा या मातृभाषा में पढ़ना होगा, यानि कि हिंदी, अंग्रेजी जैसे विषय भाषा के पाठ्यक्रम के तौर पर तो होंगे, लेकिन बाकी पाठ्यक्रम स्थानीय भाषा या मातृभाषा में होंगे।

― अभी तक हमारे देश में स्कूली पाठ्यक्रम 10+2 के हिसाब से चलता है। लेकिन अब ये *5+3+3+4* के हिसाब से होगा, यानि कि प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक एक हिस्सा, फिर तीसरी से पांचवी तक दूसरा हिस्सा, छठी से आठवीं तक तीसरा हिस्सा और नौंवी से 12 वीं तक आखिरी हिस्सा होगा, बारहवीं में बोर्ड की परीक्षा होगी । लेकिन उसमें भी कुछ बदलाव होंगे।

छात्र अपनी मर्जी और स्वेच्छा के आधार पर विषय का चयन कर सकेंगे। अगर कोई छात्र विज्ञान के साथ संगीत भी पढ़ना चाहे, तो उसे ये विकल्प होगा। दसवीं की परीक्षा और उसके स्वरूप को लेकर अभी असमंजस्य की स्थिति है। वोकेशनल पाठ्यक्रम कक्षा छठी से शुरू हो जाएंगे।

― बोर्ड परीक्षा को ज्ञान आधारित बनाया जाएगा और उसमें रटकर याद करने की आदतों को कम से कम किया जाएगा।

― बच्चा जब स्कूल से निकलेगा, तो ये तैय किया जाएगा कि वो कोई ना कोई स्किल लेकर बाहर निकले।

― बच्चा स्कूली शिक्षा के दौरान अपनी रिपोर्ट कार्ड तैयार करने में भी भूमिका निभाएगा, अब तक रिपोर्ट कार्ड केवल अध्यापक लिखता है लेकिन नई शिक्षा नीति में तीन हिस्से होंगे।

*पहला* 
बच्चा अपने बारे में स्वयं मूल्यांकन करेगा,

*दूसरा* 
उसके सहपाठियों से होगा और

*तीसरा* अध्यापक के जरिए।

ग्रेजुएट कोर्स में अब 1 साल पर सर्टिफिकेट, 2 साल पर डिप्लोमा, 3 साल पर डिग्री मिलेगी, अब कॉलेज की डिग्री 3 और 4 साल दोनों की होगी, 3 साल की डिग्री उन छात्रों के लिए जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं करना है।

― हायर एजुकेशन करने वाले छात्रों को 4 साल की डिग्री करनी होगी, उनके लिए MA एक साल में करने का प्रावधान होगा।

― नई नीति स्कूलों और एचईएस दोनों में बहु-भाषावाद को बढ़ावा देती है। राष्ट्रीय पाली संस्थान, फारसी और प्राकृत, भारतीय अनुवाद संस्थान और व्याख्या की स्थापना की जाएगी।

*शिक्षा नीति में बदलाव बहुत बड़ा व बहुत बढ़िया निर्णय है*, *ये कदम शक्तिशाली राष्ट्र निर्माण की ओर बढ़ेंगे ...।


Monday, July 27, 2020

भारतेंदु हरिश्चंद्र की गद्य शैली

भारतेंदु हरिश्चंद्र की गद्य शैली

भारतेंदु ने हिंदी की गद्य शैली का रूप प्रतिष्ठित किया है। हिंदी में संस्कृत और अरबी-फारसी शब्दों के साथ ही  उसकी जाति विशेष को समाप्त कर देता है। भारतेंदु हिंदी की इस प्रवृत्ति को पहचानते थे। वे जनता की समझ को ध्यान में रखकर सहज, सरल, स्वभाविक और व्यवहारिक गद्य साहित्य में प्रयोग की। उनकी गद्य शैली के मुख्यत: पांच रूप हैं-

बोलचाल की व्यवहारिक शैली
इस शैली के लिए बाबू बालमुकुंद गुप्त ने लिखा है कि तेज और बेधड़क लिखते थे। भारतेंदु हरिश्चंंद्र ने नाटकों तथा निबंधों में अधिकांश इसी शैली का प्रयोग किया है।

संस्कृत निष्ठ तत्सम शैली
इसशैली का प्रयोग पुरातत्व, धर्म, अध्यात्म संबंधित निबंध में किया करते थे ताकि इस शैली के माध्यम से प्राचीन विचारों को उजागर कर सकें।

अरबी फारसी की ओर झुकी उर्दू शैली 
इस शैली का प्रयोग बहुत कम हुआ है। अधिकतर निबंधों में अध्य -प्रांतीय शैली अपनाई गई है। ऐसा लगता है कि इसका प्रयोग भारतेंदु ने अपनी भाषा ज्ञान का नमूना प्रस्तुत करने के लिए किया था।

हास्य-व्यंग्य शैली 
भारतेंदु ने व्यंग्य और हास्य की दृष्टि के लिए इस शैली के अनेक प्रयोग किए हैं। कहीं उन्होंने अंग्रेजी शब्दों में संस्कृत की विभक्तियां जोड़कर विकृति और विरोध की एकत्र स्थिति को उत्पन्न किया है तो कहीं संस्कृत के शब्दों में अंग्रेजी का प्रयोग करके। उदाहरणतः  रिसेप्शन, एक्शन से टिकट च में, मद्यं च में
आदि तो कहीं अनुप्रास की छटा दिखाई देती है। जैसे शामत का मारा शाम तक पानी नहीं मांगता। 

काव्य में कलात्मकता 
गद्य लिखते समय भारतेंदु का कवि जाग उठता था। प्रकृति वर्णन करते समय या भाव चित्रण करते हुए वह  कलात्मकता के लिए रमणीय, अलंकारिक शैली का प्रयोग करते थे। सत्य हरिशचंद्र में सूर्यास्त का वर्णन इसी शैली में किया गया है जो सूर्य उदय होते ही पद्मिनी बल्लभ और अलौकिक वैदिक दोनों कर्मों का प्रवर्तक था तो 'दोपहर तक अपना प्रचंड श्मशान बढ़ाता गया जो गगनांगन का दीपक और कालसर्प का शिखा मणि था। वह इस समय पर कटे विद की भांति अपना सब तेज गवा कर देखो समुद्र में गिरा चाहता है।'

निष्कर्षत: हिंदी साहित्य साहित्य को भारतेंदु ने यह पांच महत्वपूर्ण गद्य शैली देकर समृद्ध किया है भारतेंदु ने हिंदी साहित्य और काव्य को पहली बार रीतिकालीन वातावरण से बाहर कर उसे लोग सामान्य की भाव भूमि से जोड़ा। अर्थात दरबार से कविता को बाहर निकाल आमजन तक पहुंचाया है। उन्होंने अपने नाटक नामक निबंध के माध्यम से हिंदी के नाटकों का स्वरूप प्रकट किया है।

Tuesday, July 21, 2020

हिन्दी साहित्य और अनुवाद: शोध प्रारूप बनाने का ढंग

हिन्दी साहित्य और अनुवाद: शोध प्रारूप बनाने का ढंग: शोध प्रारूप बनाने का तरीका शोध प्रारूप शोध कार्य करने से पूर्व कि वह सुनियोजित योजना है। जिसमें कुछ विशेष घटक निहित होते हैं। जिनका शोध कार्...

Thursday, July 9, 2020

शोध का अर्थ

शोध का अर्थ

शोध का अर्थ ज्ञान की खोज से होता है। जब हम वर्तमान में उपस्थित विभिन्न अवधारणा में नवीनतम ज्ञान की खोज करते हैं तो उसे शोध कहा जाता है। अतः विभिन्न विधियों द्वारा ज्ञान की खोज करना ही शोध कहलाता है। किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु हम  जब विभिन्न प्रकार के विषयों से संबंधित पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए जिस प्रक्रिया को अपनाते हैं उसे सांख्यिकी प्रक्रिया या सांख्यिकी शोध कहते हैं। 

विदित है कि यह शोध अथवा ज्ञान की खोज हमेशा से ही सांख्यिकी विधियों द्वारा ही की जाती रही है। श्री काफ्का के अनुसार किसी क्षेत्र में गतसंख्यात्मक विश्लेषण द्वारा समस्या का तर्क पूर्ण निर्वाचन करने के उद्देश्य से आवश्यक समंको के वैज्ञानिक ढंग से संपन्न की गई संकलन प्रक्रिया को सांख्यिकी शोध कहते हैं।
किसी समस्या से संबंधित अंकों का सही ढंग से संकलन व संपादन हमें बहुत महत्व होता है क्योंकि इसकी शुद्धता प्राप्त यता तथा उपयोगिता पर भी शोध की सफलता निर्भर होती है ऐसी दशा में यह आवश्यक होता है कि शोध प्रारंभ करने के पूर्व कुछ विशिष्ट बातों का ध्यान रखा जाए। पश्चात ही हम समस्या का विश्लेषण निलेश विश्लेषण अथवा समस्या से संबंधित मौलिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं जिस प्रकार किसी भी कार्य को आरंभ करने से पूर्व से फूल योजना बनाने की सुविधा सुविधा और स्पष्टता आती है उसी प्रकार किसी भी सामाजिक समस्या से संबंधित मौलिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक निश्चित ही योजना बना लेना संकलन का कार्य प्रारंभ करने के पूर्व ऐसे प्रश्न होते हैं जिनका समुचित उत्तर पता होना चाहिए इन्हीं तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना एवं किसी सुनियोजित ढंग से शोध कार्य के प्रारंभ करने के आयोजन को ही शोध कहते हैं। वर्तमान वर्तमान में शोध की अनेक विधियां उपलब्ध है शोधार्थी प्राया अपनी सुविधा और विषय अनुकूल ही शोध प्रक्रिया प्रक्रिया बिंदु का चयन करते है। उदाहरणतः यदि कोई शोधार्थी इतिहास से संबंधित किसी घटना या सत पर शोध करने का इच्छुक है तो वह अपनी शोध प्रक्रिया में ऐतिहासिक शोध प्रक्रिया एवं विश्लेषणात्मक शोध प्रक्रिया का प्रयोग करता है ताकि वह विषय से संबंधित पूर्व तथ्यों की पूर्ण व्याख्या सके।

Monday, June 29, 2020

शोध प्रारूप बनाने का ढंग

शोध प्रारूप बनाने का तरीका

शोध प्रारूप शोध कार्य करने से पूर्व कि वह सुनियोजित योजना है। जिसमें कुछ विशेष घटक निहित होते हैं। जिनका शोध कार्य के दौरान विशेष  उद्देश्य एवं योगदान होता है। शोध प्रारूप के उद्देश्य से स्पष्ट है कि शोध वह युक्तिपूर्ण योजना का नाम है। जिसके अंतर्गत विविध घटक एक-दूसरे से परस्पर संबंधित होते हैं। इन्हीं घटनाओं के बल पर कोई शोध सफलतापूर्वक संपादित हो पाता है; जो अंतर्संबंधित होते हैं। वह घटक हैं--

  • सूचना प्राप्ति के स्रोत
  • अध्ययन की प्रकृति 
  • अध्ययन के उद्देश्य
  • अध्ययन के सामाजिक -सांस्कृतिक संदर्भ
  • अध्ययन द्वारा समाहित भौगोलिक क्षेत्र 
  • शोध कार्य में खर्च होने वाले समय का काल -निर्धारण
  • अध्ययन के आयाम 
  • आंकड़े संकलित करने का आधार 
  • आंकड़े संकलन हेतु प्रयोग की जाने वाली विभिन्न विधियां। 
अतः यह स्पष्ट है कि किसी भी शोध कार्य को करने से पूर्व उसकी एक ऐसी रूपरेखा का निर्माण किया जाता है जिसमें संपूर्ण शोध समाहित हो जाए। इन्हीं विचारों को ध्यान में रखते हुए विद्वानों ने उपर्युक्त बिंदुओं की ओर संकेत किया है। वर्तमान युग में शोध के क्षेत्र में इन्हीं बिंदुओं के आधार पर शोध प्रारूप को तैयार किया जाता है। इन बिंदुओं के अभाव में तैयार किया गया शोध प्रारूप अमान्य सा अस्पष्ट होता है।

Friday, June 26, 2020

भाषा की समृद्धि में अनुवाद



भाषा की समृद्धि में अनुवाद
अनुवाद से भाषा की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। नए भावों, विचारों और अभिव्यक्तियों से एक ओर जहाँ अभिव्यक्ति-क्षमता बढ़ती है, वहीं दूसरी ओर उसका शब्द-भण्डर भी विस्तृत होता है। इस प्रक्रिया में उनके समकक्ष पर्याय खोजने, नये शब्द निर्माण एवं अन्य भाषाओं के शब्दों को ज्यों का त्यों थोड़ा फेर-बदल करके ग्रहण कर लिया जाता है। उदाहरणतः अंग्रेजी के शब्द ‘hour’ के लिए हिंदी में घंटा’, ‘minute’ के लिए मिनट’, ‘tragedy’ के लिए त्रासदीऔर ‘comedy’ के लिए कामदीरखे गए हैं।
इसी क्रम में Toxin, venom, poison, App, Whatsapp, blue tooth, Wikipedia, verse, internet, sms, Facebook आदि अंग्रेजी शब्दों ने कहीं न कहीं हिंदी को समृद्ध किया है। किंतु बाजारीकरण के बाजारूपन ने भाषा को निरंतर घटिया और अस्पष्ट बना दिया है। इसके अतिरिक्त उर्दू, अरबी, फारसी एवं अनेक देशज भाषा शब्दों के आगमन ने भी भाषिक विकास में सहयोग किया हैवकालतनामा, हलफ़नामा, मराठी की पावती (knowledgement), आवक (inward), जावक (outward), कन्नड़ से सांध (Annex) आदि इसी संवर्धन का प्रमाण हैं।
         सच तो यह है कि भाषा संवर्धन की प्रक्रिया के दौरान भाषा में जो बाजारूपन आया, वह बाजार के कारण नहीं; बल्कि मानवीय समाज की क्रूरता के कारण हुआ है। जिसका प्रतिफल हम जनसंचार के विश्वसनीय माध्यम दूरदर्शन में देख सकते हैं।
रोचक बात तो यह है कि भारतीय जनसंचार में दूरदर्शन की भूमिका प्रभावी है। क्योंकि यह दृश्य के साथ-साथ श्रव्य माध्यम भी है। इसकी भाषा में रंगमंचीयता घोलने के प्रयास ने भाषा को बेहद कच्चा कर दिया है। जिसे हम दूरदर्शन की संवाद-शैली के एक उदाहरण में समझ जाएंगेसभी सर्वेक्षणों के द्वारा यह पाया गया है, संवाददाता का समाचार के दौरान कहनायदि हम विशेष की बात करें तो पाएगें इत्यादि।
          आज दूसरी भाषा सीखना न केवल व्यक्ति की सांस्कृतिक संपन्नता का प्रतीक है। बल्कि उसकी आवश्यकता बन गया है। आज यदि कोई व्यक्ति दूसरी भाषा सीखना चाहता है तो किसी शैक्षिणिक भाषा के रूप में सीख सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य भाषिक ज्ञान को उस भाषा में प्रणीत साहित्य का रसास्वादन कर सकता है। वह अन्य भाषा-भाषी के जीवन, परंपरा और संस्कृति को व्यापक स्तर पर जान सकता। जानने की यह प्रबल इच्छा अनुवाद के कारण ही जागृत होती है। इस कार्य में अनुवादक की निष्ठा, लगन और प्रभावी भूमिका उल्लेखनीय है जिसने संपूर्ण विश्व को एक ग्राम में परिवर्तित कर दिया है, जो निरंतर सिकुड़ रहा है।